तुर्की यात्रा

  

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Istambul


आजकल मैं सपरिवार इस्तांबुल, तुर्की घूम रहा हूँ...

क्या गज़ब खूबसूरत देश है भाई— लेकिन हर शहर की तरह इसके भी दो हिस्से हैं। एक मॉर्डन शहर और एक पुराना शहर। मैं पुराने शहर में हूँ। यूरोपियन साइड वाले में।

होटल भी हाया सोफिया से पांच मिनट की दूरी पर लिया है। पिछले हफ्ते यूरोप में था (फ्रांस में )... मेनलैण्ड यूरोप घूमने के बाद तुर्की में बहुत कुछ अपने देश जैसा ही लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे कि अपने लोगो के बीच आ गया हूँ।

इसके कुछ निगेटिव्स की बात करू तो—

इस्तांबुल को प्रॉपर्टी माफियाओं ने एक कॉन्क्रीट के जंगल में तब्दील कर दिया है। एशिया साइड वाला पूरा शहर ऊँची ऊँची बिल्डिंगों से पटा पड़ा है। बिलकुल ऐसा लग रहा है, जैसे मुम्बई या गुड़गांव में घूम रहा हूँ— लेकिन साइज़ की बात करूँ तो ये साइज़ में मुम्बाई से बीस और गुड़गांव का तो बाप ही होगा। चालीस मिनट से निर्बाध गति से टैक्सी चल रही है और दोनों तरफ बिल्डिंगों के पहाड़ ख़तम होने का नाम नहीं ले रहे।

यूरेसिया टनल पार कर के जब पुराने शहर में दाखिल हुए तो भीड़-भड़क्का होने के बावजूद एक सुकून मिला। ऐसा लगा जैसे अपने ही किसी पुराने शहर में आ गये हों… और भैय्या, हर मस्जिद "हाया सोफिया" और "ब्लू मोस्क" जैसी सरंचना वाली बनी हुई है।

मैं कम से कम दस बार कनफ्यूज हो गया यह मस्जिदें देख कर। यहां टूरिस्टों की भीड़ बहुत है। भाषा की ज़बरदस्त समस्या है। कोई इंग्लिश नहीं समझता। यहाँ तक कि अरब से आने वाले टूरिस्ट्स भी भाषा के मामले में संघर्ष कर रहें हैं… लेकिन बहुत सारे अपने तुर्किश ओरिजिन वाले शब्दों से काम चलता जा रहा है— जैसे कि तक़रीबन, दिक्कत, बाज़ार आदि आदि।

होटल सस्ते और महंगे दोनों हैं। फिलहाल अपने सुविधाभोगी और क़दम-क़दम पर थक जाने वाले परिवार के चक्कर में बहुत महंगा होटल लेना पड़ा है। सोचा था कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करूँगा— लेकिन बेग़मजान और बेटी ने गर्दा काट दिया कि हम बस ट्रेन या ट्राम से नहीं जाएंगे। इसलिये टैक्सी में सफर करने की वजह से जेब से पैसा ठकाठक-ठकाठक निकले जा रहा है।

मेरी वाइफ वेजिटेरियन है। वेजिटेरियन वालो के लिये यहां बहुत समस्या है भाई। फ्रेंच फ्राइज, सलाद और फलाफल के अलावा और कुछ नहीं है। मैं और मेरी बेटी नॉनवेज खातें हैं, इसलिये हम दोनों की मौज है। नॉनवेज वालों के लिये स्वर्ग है। अन्नानास और अनार का जूस बहुत बिकता है यहाँ। तुर्की में भी अन्नानास ही बोलतें हैं।

वेजिटेरियन खोजने के चक्कर में अपने होटल के पास ही एक इंडियन रेस्टोरेंट मिल गया। एक पाकिस्तानी चचा का रेस्टोरेंट है। देशी खाना मिलने के चक्कर में मेरी वाइफ ने तो रेस्टोरेंट वाले को अपना भाई ही बना लिया, उसने भी वाइफ के लिये वेज कोफ्ता, पनीर और कश्मीरी पुलाव फ्री में बाँध दिया।
Ariel View of Istambul


अब कुछ पोजिटिव्स की बात करता हूँ—

घूमने वाली जगहों का फीडबैक सुन लीजिये पहले…

हाया सोफिया— अमेज़िंग!
नीली मस्जिद (ब्ल्यू मॉस्क)— सुंदरता की प्रतिमूर्ति!
सुलतान मेहमत एरिया—बहुत जबरदस्त! पूरा दिन बिताया जा सकता है।
इश्तिकाल स्ट्रीट— आधुनिकता और पारम्परिक इस्तांबुल का संगम, बहुत सुन्दर।
ग्रांड बाजार— बस ठीकठाक ही है, दिल्ली के पालिका बाजार जैसा है। बार्गेनिंग जबरदस्त है, लेकिन पालिका बाजार जैसी बदतमीजी और बदमाशी नहीं है। साफ़ सफाई, हाइजीन जबरदस्त है।
क्रूज़ की सवारी— बहुत अमेज़िंग, जरूर जाइये।
गलाटा टॉवर— बहुत सुन्दर है। शाम ढले जाइये।
नॉनवेज वालों के लिये बहुत ऑप्शन हैं। उसके आलावा स्ट्रीट फ़ूड भी बहुत सारे हैं, कॉफी और चाय का जबरदस्त चलन है यहाँ पर।

तुर्किश महिलायें और लड़कियां इतनी सुन्दर हैं कि कमजोर दिल वाले तो गश खाकर गिर सकतें हैं। सुंदरता ऐसी कि मेरी वाइफ और बेटी तक कई लड़कियों को एकटक देखती रह जा रहीं हैं। पारम्परिक तुर्किश कबीलाई सभ्यता और बाल्कन पेनिन्सुला के मौसम ने शायद धरती की सबसे सुन्दर महिलायें इसी इलाके में पैदा की हैं।

बहुत ही सॉफ्ट-स्पोकन और तमीज़ से बात करतीं हैं यहाँ की महिलायें। सर पर हिज़ाब पहने, चिट्टा स्किन टेक्सचर, भूरी आँखें, हड्डी चमकती नाक, और सौम्य मुस्कान यहाँ की महिलाओं की पहचान हैं। लड़के भी बहुत स्मार्ट हैं। लम्बे तगड़े गबरू जवान, लेकिन बेरोजगारी बड़ी समस्या लगती है यहाँ।

तुर्किश लोग बहुत प्यारे और सीधे साधें हैं। ऐसा लगता है जैसे कि इस्तांबुल में ये पहली जेनेरेशन है, जो गाँवों और छोटे कस्बों से माइग्रेट हो कर नौकरी और पैसा कमाने एक बड़े शहर में आयी हो। इसलिये लोगो के स्वभाव में किसी गाँव की सी सौम्यता और सीधापन है। अपवाद स्वरुप कुछ गड़बड़ लोग तो मिलते ही हैं, थोड़ा सावधान भी रहन पड़ता है.. टैक्सी वाले बहुत लुटेरे हैं।

एक प्यारे से कुर्दिश टैक्सी वाले भैय्या मिले। वो बोले कि मैं तुर्किश नहीं कुर्दिश हूँ… और फिर मेरे कान के पास आ कर धीरे से बोले कि ये आदमी (एर्दोगोन) और उसके सपोर्टर हमें आतंकवादी बोलतें हैं। मैंने मन में सोचा कि हर सभ्यता अपने घर में कोई नक्सलवादी ढूंढ ही लेती है... बहुत दुखद।

सिगरेट तो यहाँ के लोग ऐसे पी रहें हैं जैसे भट्टियां जल रही हों। बहुत ही खुला हुआ कल्चर है। लड़कियां खुलेआम सिगरेट पी रहीं हैं, और सभी लड़कियां पारम्परिक के साथ साथ आधुनिक कपडे पहनतीं हैं।
देसी मुसलमान अपने पारम्परिक इस्लमिक कल्चर का कोई मुगालता लेकर तुर्की न जाये, उन्हें बहुत बड़ा शॉक लग सकता है।

ये तुर्किश नस्ल की अपनी एक अलग सभ्यता और अलग कल्चर है। इनकी हिन्दुस्तानी मुस्लिम कल्चर से कोई समानता नहीं है (सिवाय पूजा पद्धति के )...
इंडिया के बारे में यहाँ के लोग अच्छा खासा जानते हैं।
भारत को ये लोग इंदीस्तान बोलते हैं.

गर्मी ठीक ठाक है, सुबह शाम बहुत सुहावना मौसम है— लेकिन फिर भी बेहतर है कि मार्च अप्रैल में ही प्लान करें। मई-जून जुलाई में न ही जायें तो बेहतर होगा।

अलग-अलग तरह का बकलावा जरूर ट्राई करना। मैंने तीन किलो बकलावा पैक करवाया है और दुकान वाले ने मुझे लगभग आधा किलो बकलावा जबरदस्ती ही खिला दिया— वह भी फ्री में।

ओवरऑल मुझे तुर्की इस्तांबुल बहुत भाया। मैं फिर से जाऊँगा। इस बार अंकारा, अंटालिया और इज़मिर भी जाऊँगा।

तुर्की के बारे में अपने अनुभव साझा करने से पहले यहाँ घूमने के खर्चों के बारे में बात हो जानी चाहिये। फेसबुक पर लिखते समय काफी मित्रों के कमेंट्स आये थे कि बजट के बारे में अपना अनुभव बताइये।

तो सबसे पहले तो ये समझिये कि तुर्की एक बहुत बड़ा देश है। यहाँ घूमने का मतलब तुर्की की सभी टूरिस्ट डेस्टिनेशन घूमना नहीं है। सिर्फ तीन शहर, इस्तांबुल, इजमिर और अंटाल्या कवर करने के लिये आपको कम से कम आठ दिन चाहिये। इसमें से दो दिन सिर्फ ट्रैवेलिंग में लगा लीजिये।

इसलिये पहला सुझाव ये रहेगा कि पहली यात्रा में सिर्फ इस्तांबुल ही कवर कीजिये। मेरे हिसाब से सिर्फ इस्तांबुल घूमने के लिये आपको कम से कम चार दिन चाहिए।

मैं आपको चार दिन का कार्यक्रम बता रहा हूँ— लेकिन इन सब स्थानों का रिव्यू मैं आगे लिखूंगा कि ये सब जगहें मुझे कैसी लगीं। फिलहाल खर्चे और प्लानिंग देखतें हैं।
पहला दिन—
आया सोफिया, नीली मस्जिद, सुल्तान टोपोकी किला।

Hagya-Sofia Mosque
ये तीनों एक ही जगह पर स्थित हैं। सच कहूँ तो इन तीनों को सही से एक्सप्लोर करने के लिये आपको दो दिन चाहिये— लेकिन एक दिन भी काफी है। सुबह आपको आया सोफिया में जाना है, उससे बाहर आते आते लंच टाइम हो जायेगा। लंच के बाद आपको टोपोकी पैलेस जाना है, और उससे बाहर निकलने के बाद किले के बगल में समंदर के साथ एक वॉक करनी है, जहाँ से आप यूरोपियन हिस्से में खड़े हो कर समंदर पार सामने एशिया को देख सकेंगे।


Blue Mosque
शाम चार बजे के आसपास आप ब्ल्यू मस्जिद में घूमने जाइये और फिर बाहर आ कर शाम ढले तक बाहर कम्पाउंड में ही बैठिये। आपके सामने आया सोफिया होगी और पीठ पीछे नीली मस्जिद होगी। ये कम्पाउंड दुनिया की सबसे सुन्दर जगहों में से एक हैं। आप यहाँ घंटो बैठे बैठे बिता सकते हो।


रात डिनर के बाद आप वहीं बाजार में घूम सकतें हैं। बहुत ही सुन्दर-सुन्दर दुकानें दिखेंगी आपको।
Topkapi Palace


दूसरा दिन—
इश्तिकाल स्ट्रीट , तक़सीम स्क्वायर और गलाटा टॉवर।
Ishtiqal Street


सुबह नाश्ते के बाद ग्यारह बजे तक इश्तिकाल स्ट्रीट पहुँच जाइये। बड़ी ही खूबसूरत बाजार है। जबरदस्त आधुनिक शोरूम और पारम्परिक दुकाने मिलेंगी। बकलावा यही से ले सकते हैं। उसके बाद दो घंटे तक़सीम स्क्वायर में घूमिये। कहने की जरुरत नहीं कि ये भी जबरदस्त सुन्दर जगह है। यहीं लंच कीजिये।
Taqsim Squire


इसी के पास गलाटा टॉवर है। लंच के बाद तीन बजे तक यहां पहुंच जाइये। टॉवर के अंदर जाकर बाहर आने तक पांच बज जाएंगे। उसके बाद टॉवर के आसपास ही समय बिताइये। रात की लाइटिंग में टावर को निहारिये। आसपास बहुत सारे रेस्टॉरेंट हैं। डिनर कर के वापस जा सकतें हैं।
Galata Tower


तीसरा दिन—
ग्रैंड बाजार , स्पाइस बाजार , बॉस्फेरस क्रूज़।

सुबह नाश्ते के बाद सबसे पहले आप ग्रैंड बाजार पहुँचिये। ये दुनिया का सबसे पुराना मॉल बाजार माना जाता है। हज़ारों दुकानें हैं यहाँ पर। कंजेस्टेड है, लेकिन बहुत साफ़ सुथरा है। बहुत ही पारम्परिक दुकाने हैं। बार्गेनिंग के बिना कुछ मत लेना, शॉप वाले असल दाम से दोगुने तीनगुने दाम बोलतें हैं।
Grand Bazar


मेरी वाइफ़ ने यहाँ सबसे ज्यादा खरीदारी करी है। यहाँ एक इंडियन की शॉप भी है। वो भाई इंडियंस को शक्ल देखते ही पहचान जाता है और फिर खींच के अपनी दुकान में ले जा कर सूखे मेवे और चाय बेच देता है— लेकिन लड़का बहुत अच्छा है खुशमिजाज है। वाइफ ने सस्ते दाम पर उससे हीमोग्लोबिन बढ़ाने वाली हर्बल चाय खरीदी।

मेरे बापू ने फोन कर करके जान ले रक्खी थी कि मेरे लिये ब्लड प्रेशर वाली चाय ले आना। तो बापू के लिये ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने वाली चाय खरीदी। लंच बाद स्पाइस बाजार और आसपास के एरिया घूमिये और शाम को बॉस्फेरस क्रूज़ की सवारी कीजिये।
Spice Market


एशिया और यूरोप के बीच में तैरते जहाज से चमचमाते इस्तांबुल शहर की खूबसूरती आपको अलग ही दुनिया में ले जायेगी। ऐसा लगेगा कि आप किसी गैलेक्सी में तैर रहें हैं। इस समुन्द्री सवारी से कस्तुनतूनिया की सुंदरता को बखारने के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास। ऐसा लगता है जैसे इस्तांबुल शहर और समंदर के बीच सुंदरता की कोई होड़ चल रही हो।
Bosphorus Cruise


क्रूज पर पारम्परिक तुर्किश गीत-संगीत चलता है और खाना पीना मिलता है। क्रूज की सवारी ख़तम कीजिये और होटल वापिस।

चौथा दिन—
सुलेमानी मस्जिद और कोरा म्यूजियम,
सुल्तान मेहमत के आस पास का बाजार और अगले दिन वतन वापसी।
खर्चा—

अब सीधे पॉइंट पर आता हूँ— पूरा खर्चा तीन लोगो के हिसाब से बताता हूँ (पति पत्नी और एक बच्चा, जो अंडर-15 हो)

देखिये आपको 7000 भारतीय रूपये प्रतिदिन के हिसाब से बजट रखना है— जो कि लगभग ढाई-तीन हज़ार तुर्किश लीरा होतें हैं। तो 7000 रूपये प्रतिदिन में आपकी रोज की टैक्सी, दो वक़्त का खाना और टूरिस्ट स्थलों के टिकट में जायेंगे। यह चार दिन का औसत है प्रतिदिन के हिसाब से। इस अमाउंट में आप रिच क्लास टाइप वाली फीलिंग से टूरिज्म कर सकतें हैं।

मैं बताना भूल गया कि सभी जगह टिकट लेना पड़ता है। सिर्फ नीली मस्जिद में एंट्री फ्री है और मुसलमानों के लिए नमाज़ के वक़्त "आया सोफिया" में भी फ्री एंट्री है। तो भैय्या फ्री में "आया सोफिया" में जाना हो तो इस्लाम धर्म ग्रहण कर सकतें हैं आप।

सबसे महंगा टिकट सुलतान मेहमत टोपोकी पैलेस में है, 45 यूरो (लगभग चार हज़ार रूपये) प्रतिव्यक्ति वसूल रहें हैं आजकल। तो प्रतिदिन 7000 के हिसाब से चार दिन का खर्चा हो गया— 30000 भारतीय रुपये (लगभग ) पांच रातें चार दिन होटल का हो गया— 40000 (3 लोगो के लिए 8000 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से) और तीन लोगो की फ्लाइट का खर्चा— डेड़ लाख ( 50 हजार प्रतिव्यक्ति रिटर्न टिकट )

तो इस हिसाब से तीन लोगो के लिये टोटल खर्चा होता है— 30000+40000+150000 =220000 (दो लाख बीस हज़ार)... मेरे हिसाब से तीन लोगो के लिये चार पांच दिन का आप "ढाई लाख" पकड़ के चलिये— और थोड़ी मितव्यतता से चलें तो मामला कम में भी निपट सकता है।

पैसे बचाने के तरीके—

1.अधिकतर होटलों में ब्रेकफास्ट इन्क्ल्यूडेड होगा। तो दबा के नाश्ता करिये और केले लेकर चलिये। इससे आप लंच के पैसे बचा सकतें हैं। या फिर लंच की जगह हल्का-फुल्का स्ट्रीट फ़ूड नाश्ता कीजिये और शाम का डिनर 6 बजे तक कर लीजिये। प्रतिदिन के हिसाब से लगभग डेड़-दो हजार भारतीय रूपये बच जायेंगे, तीन लोगो के।
2. इस्तांबुल में बहुत सारे म्यूजियम हैं, लेकिन म्यूजियमों में घूमने मत जाइये। पुराने राजा बादशाहों के बर्तन भांडे, तलवार, कपड़े और चोगे देख के क्या हासिल होगा। मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं। पूर्णतयः अवॉइड कीजिये।
3. टैक्सी वालो से अच्छे से बार्गेन कीजिये और हो सके तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट लीजिये। हालांकि फैमिली के साथ ये संभव नहीं है लेकिन कोशिश की जा सकती है। एक ट्राम में अगर आपके 100 रूपये लगे तो टैक्सी में उतने ही डिस्टेंस के लिए आठ सौ रूपये लगेंगे। सोचिये कितने पैसे बच सकतें हैं।
Tram

4. फ्लाइट इंडिगो से बुक करवाइये और दो महीने पहले करवाइये। इन लोगो का तुर्किश एयरलाइंस वालो के साथ करार है और यही सबसे सस्ती फ्लाइट है।
5. हो सके तो तुर्किश लीरा यहीं से लेकर जाइये, वहां पर एटीएम में कन्वर्जन रेट बहुत ज्यादा है। लगभग 10 से 13 परसेंट तक काट लेते हैं।

सावधानी क्या बरतनी हैं—

अच्छे बुरे लोग हर जगह होतें हैं। इसलिए अगर कोई जबरदस्ती पल्ले पड़े तो उसे अवॉयड कीजिये। कोई कितनी भी आत्मीयता से बात करे, हमेशा उससे सावधान रहिये— और मुस्लिम भाई लोग ज्यादा सावधान रहिये। धर्म भाई होने के नाते प्यार दिखा के काटने वाले काफी इंसिडेंट होते रहतें हैं… और सावधानी के चक्कर में हर किसी पर शक़ भी मत कीजिये। ज्यादा शक़ करना भी गलत होता है। लोगो से मिलिये और बात कीजिये।

टैक्सी वालों से सावधान। वैसे आपको फिजिकली कोई नुकसान नहीं पहुंचायेंगे लेकिन टैक्सी किराए में मौका मिलते ही उल्टे सीधे दाम बोलेंगे। इसलिए किराया पहले तय करके ही जाइये।

बाकी सब मस्त है। अगर एक बार तुर्की घूम आये तो बार बार जाने का मन करेगा… एक अजीब सी आत्मीयता, एक अजीब से कशिश है इस देश में, इस शहर इस्तांबुल में।

आप दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह भी देखने जाओ, लेकिन वहां अगर कोई बन्दा आपसे बदतमीजी कर दे या आपको वहां सुरक्षित फील न हो तो आपका पूरा टूर बर्बाद हो जाता, ऐसे टूरिज्म का कोई फायदा नहीं। तुर्की इसी मामले में स्पेशल है, यहाँ के लोग बहुत प्यारे हैं, बहुत वेलकमिंग हैं और बहुत ही सॉफ्ट स्पोकन हैं।

मैं बात कर रहा हूँ तुर्की के आम लोगो की, क्लीनर की, सिक्योरिटी वालों की, होटलों में काम करने वालो की, पुलिस वालो की, बहुत ही आम साधारण लोगों की। इनका टूरिस्टों के प्रति अच्छा व्यवहार इसलिये नहीं कि हम कस्टमर हैं, बल्कि मैंने ये फील किया की ये लोग भाषाई बाध्यता के बावजूद मदद करने और कम्युनिकेट करने में खुद पहल करतें हैं। इस बात को ख्याल में रखियेगा।
आया सोफिया और सुलतान मेहमत चौक

आया सोफिया का टिकट देख कर हम थोड़ मायूस हुए (Euro 25)— लेकिन मैंने देखा की मुस्लिम्स के लिये फ्री एंट्री हैं और नमाज के लिये लोग लाइन लगा कर अंदर जा रहें हैं। हम डिस्कस कर ही रहे थे कि तब तक मेरी बेटी कतई बेनज़ीर भुट्टो बनकर सर पर दुपट्टा रखकर नमाजियों की लाइन में लगकर अंदर घुस गयी और दूर से हमें हाथ दिखा कर अपने फन्ने खाँ होने का प्रमाण देने लगी।

मैं भाग के लाइन के पास गया और उसे आवाज दे कर वापिस बुलाया और बोला की मैडम आप अंदर तो चली जाओगी लेकिन अंदर नमाज कैसे पढ़ोगी? तभी एक सिक्योरिटी वाला हमारे पास आकर पूछने लगा कि क्या हुआ। मैंने उसे साफ़ बता दिया कि हम नॉन मुस्लिम हैं और ये गलती से लाइन में घुस गयी थी। तो बजाय नाराज होने के उस भाई ने एक झन्नाटेदार ताली मारी और जोर जोर से हंसने लगा।

और उसके बाद मेरी बेटी को बोलने लगा कि तुम चाहो तो अंदर जा सकती हो, मैं तुम्हे नमाज पढ़ना सीखा देता हूँ, और बाकायदा नमाज करने का तरीका बताने भी लगा। बहरहाल उससे बात करके हम वापिस आ गये। बेटी के साथ वापिस आते वक़्त पीछे मुड़ कर देखा तो वो दूसरे सिक्योरिटी वाले को हमारे बारे में बता रहा था, और दोनों हँस रहे थे और हमारी तरफ हाथ हिला रहे थे।

बस यही सरल सौम्य माहौल "आया सोफ़िया" और "सुलतान मेहमत चौक" की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है। टूरिस्टों की भयंकर भीड़ होने के बावजूद मैंने कोई बहस, कोई गड़बड़ी, कोई लड़ाई झगड़ा, कोई अवव्यस्था नहीं देखी इधर। बाहरी स्ट्रक्चर की बात करें तो "ब्ल्यू मस्जिद " सुंदरता के मामले में "आया सोफिया" से बीस ही है— लेकिन आया सोफिया के अंदर जाने पर उसकी भव्यता और सुंदरता का एहसास होता है।

वैसे तो मैं सामंती राजाओं, बादशाहों का फैन नहीं हूँ और इतिहास को वैज्ञानिक तरीके से ही देखता हूँ— लेकिन फिर भी आया सोफिया के अंदर जा कर एहसास हुआ कि कैसे एक इक्कीस साल के लड़के सुलतान मेहमत ने इसे जीता होगा। क्या जीवटता रही होगी उसकी। शायद महाभारत का अभिमन्यु अपने को सिद्ध करने के लिये दूसरा जनम लेकर तुर्की में आ गया होगा।

आया सोफिया के अंदर जाइये, और शांति से अंदर के स्ट्रक्चर को निहारिये। फर्श पर बैठिये और फिर चारों ओर सभी कोनों में घूमिये। इसकी सुंदरता का ज्यादा बखान नहीं करूँगा। बेहतरीन और यूनीक इमारत है यह।

आया सोफिया, "ब्ल्यू मस्जिद" और "टोप्कोपि पैलेस" सब एक ही कम्पाउंड में स्थित हैं और ये कम्पाउंड असंभव रूप से खूबसूरत है। कम्पाउंड में हार्ड फ्लोरिंग हैं। बीच-बीच में हरी हरी सॉफ्ट घास हैं, बैठने के लिये तमाम जगहें हैं और प्यारे प्यारे फव्वारे लगें हैं। मैं तो एक फव्वारे के अंदर शिवलिंग चेक करने लग गया था— लेकिन मिला नहीं तो मायूस होकर वापिस आ गया। जोक अपार्ट, मेरा बस चले तो इस्तांबुल में कहीं और घूमने ही न जाऊं, और सारे टूर में सुबह से शाम तक बस इसी कम्पाउंड में ही आकर बैठ जाऊं।

इस कम्पाउंड के तीन तरफ का इलाका काफी कंजेस्टेड है, पतली-पतली सड़के और गलियाँ हैं, गलियों में दुकाने हैं लेकिन इस इलाके का भी अपना अलग ही मजा है। खाने पीने के शौकीनों के लिये ये जगह स्वर्ग है। ये इलाका फैमिली वालो के लिये सुरक्षित और सेफ जगह है। आराम से घूमिये।
बॉस्फेरॉस क्रूज़ की सवारी—

इस्तांबुल में बहुत सारे क्रूज़ टूर वाले हैं। दिन में और शाम को दोनों टाइम क्रूज़ चलते हैं। मैंने रात वाला क्रूज़ लिया था। ये लोग आपको इस्तांबुल के यूरोप और एशिया के बीच समन्दर की सैर करवातें हैं, जहाँ से आप इस्तांबुल का यूरोप वाला हिस्सा और दूसरी तरफ एशिया वाला हिस्सा देख सकतें हैं। रात के वक़्त इस्तांबुल शहर की खूबसूरती देखते ही बनती हैं और पूरे शहर का अक्स समंदर में उतर जाता है।

ऐसा लगता है जैसे इस्तांबुल शहर और समंदर में कोई होड़ चल रही है की कौन ज्यादा खूबसूरत है। लगता है जैसे शहर इस्तांबुल अपनी सुंदरता की अकड़ में समंदर को मुँह चिढ़ा रहा हो, और समंदर किसी बड़े भाई की तरह अपने छोटे भाई इस्तांबुल की इतराहट पर मुस्कुरा रहा हो। इस्तांबुल बोल रहा हो कि मैं ज्यादा खूबसूरत हूँ और समंदर बोल रहा हो कि भाई तू तो अभी हज़ार-दो हज़ार साल पहले ही निखरा है। मैं तो तुझे जबसे देख रहा हूँ जब तू बसा भी नहीं था। बहरहाल, ज्यादा शायराना होने की कोशिश न करते हुए मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि इस्तांबुल टूर में आप ये क्रूज की सवारी जरूर कीजिये।
इस्तिक़लाल स्ट्रीट (स्वतंत्रता मार्ग) की सैर—

इस्तिक़ाल स्ट्रीट इस्तांबुल का सबसे आधुनिक और सबसे नया टूरिस्ट स्पॉट है। एक बहुत लम्बी और चौड़ी सड़क है, जिसके दोनों तरफ बड़े बड़े आधुनिक शोरूम और दुकाने हैं। पूरी स्ट्रीट को इस्तांबुल प्रशासन बहुत सजा-धजा के रखता है। इसकी साफ़ सफाई, सुंदरता भी लाजवाब है। दुकानें इतनी सुंदर हैं कि बस पूछिये मत। चाय कॉफी और नाश्ता अच्छा मिलता है। दो तीन घंटे आप यहाँ आराम से घूम सकतें हैं।

बकलावा और तुर्किश डिलाइट मिठाई आप यहाँ से ले सकतें हैं। काफी वैराइटी मिलेगी आपको यहाँ। स्ट्रीट के बीचों-बीच से ट्राम गुजरती है और आश्चर्यजनक रूप से ट्राम के लिये कोई अलग ट्रैक या फेंसिंग नहीं है। अपने कोलकाता वाली स्टाइल में। इस्तिक़लाल स्ट्रीट के बीच बीच में ही दोनों तरफ से अंदर की तरफ संकरी-संकरी गलियां कटती हैं, जहाँ आपको बार, पब, डिस्कोथेक और दारूबाजों के अड्डे मिलेंगे। यहॉं पर अधिकतर यूरोपियन बीयरबाज लड़के-लड़कियां बीयर पीते डांस करते दिख जाएंगे।

हर पब के बाहर एक लम्बे कद का गठीले शरीर का लड़का खड़ा मिलेगा, जिसके बाल स्टाइलिंग जेल लगा के ऊपर खड़े मिलेंगे। वो आपको मुस्कुरा के बार या पब में बुलाता मिलेगा। अगर फैमिली के साथ हों तो इधर जाने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिये। अगर अकेले लड़के लपाटों के साथ हो तो बीयर मार के आ सकते हो।

इसके आलावा इस्तांबुल में बहुत सारी घूमने वाली जगहें हैं। आप इंटरनेट पर खोज लीजिये और रिव्यू पढ़ कर घूम आइये। मैं ज्यादा लिखूंगा तो बोर हो जाएंगे आप। मेरे हिसाब से पूरा इस्तांबुल ही खूबसूरत है। यूरोप जैसा माहौल है लेकिन आपको देसी-गंवई, और छोटे शहर कस्बों के अहसास से अलग नहीं होने देता।
यूरोप जितना महंगा नहीं है और वीसा प्रोसेस भी आसान है।

एक बार घूम के जरूर आइये। मैं तो भैय्या अगले एक दो साल में फिर से जाने का प्लान कर रहा हूँ। अब आगे मैं एक लड़की के बारे में लिख रहा हूँ, जिसके बारे में जान कर शायद आपको तुर्की की संस्कृति और परिवेश की थोड़ी जानकारी मिले।

जितनी सुन्दर वो थी उतना ही प्यारा उसका नाम भी— कुब्रा गुनेल (तुर्किश में "ख़्यूब्रा" बोलते हैं )... कुब्रा से हमारी मुलाक़ात होटल में चेक इन के वक़्त ही हो गयी थी। वो फ्रंट डेस्क ऑफिसर थी वहां। कुब्रा को इंग्लिश नहीं आती थी— लेकिन बेसिक जर्मन आती थी। मेरी वाइफ और बेटी को भी बोलने समझने लायक जर्मन आती है।

हमें चेक इन के लिये दो घंटे वेट करना पड़ा था, और इसी वक़्त कुब्रा से मेरी वाइफ की बातचीत शुरू हो गयी। जो आगे सुबह शाम रोज चलती रही। वो कस्टमर्स को एटेंड करने के लिये फ्लोर पर हमेशा इधर उधर भागती रहती थी— लेकिन हमें देखते ही वो हमारे पास आ जाती थी। कुब्रा से बातचीत के दौरान हमें इस्तांबुल महानगर और तुर्की के निम्न मध्यमवर्ग के हालात की एक झलक मिलती है।

कुब्रा ने बताया कि इस्तांबुल में सर्वाइव करना किसी चमत्कार से कम नहीं है। सैलरी बहुत कम है और खर्चे बहुत ही ज्यादा हैं। उसने साइकोलॉजी में मास्टर्स और टीचिंग का कोर्स किया है, लेकिन जॉब नहीं मिलने की वजह से होटल रिसेप्शन पर काम करती है। चूँकि वो नयी पीढ़ी की लड़की है और उपभोक्तावाद से ग्रसित एक आर्थिक संकट से जूझते देश में रहती है, इसलिए काफी परेशान है।

नयी जवान बच्ची थी, इसलिये नए गैजेट्स रखने और मेकअप का उसे काफी शौक़ था, हॉस्पटिलिटी क्षेत्र में जॉब की वजह से खुद को बहुत मेंटेन करना पड़ता है उसे। कपड़ो और मेकअप में ज़रा भी कमी हो तो फ़्लोर मैनेजर तुरंत टोक देती है। इसी से चिढ़ कर वो अपनी "भवें तान के और होंठ टेढ़े करके" बार-बार बोलती रहती थी— "पैसे तो बढ़ाते नहीं है और हमेशा टोकते रहतें हैं"

कुब्रा कुछ सालों से एक लड़के के साथ रिलेशन में है। वो लड़का भी किसी डॉक्टर के यहाँ लैब टेक्नीशियन है। दोनों का शादी के बाद (डोईचलैंड) जर्मनी शिफ्ट होने का प्लान है। कुब्रा ने मेरी वाइफ को बताया कि उसका बॉयफ्रेंड बहुत ही आलसी और लापरवाह लड़का है, जर्मनी इम्मीग्रेशन के प्रोसेस में बहुत लेट लतीफी कर रहा है, इसी वजह से उनकी शादी भी टलती जा रही है और इस कारण से उन दोनों की रोज लड़ाई होती है— लेकिन दोनों में प्यार भी बहुत है।

मेरी वाइफ ने पूछा कि क्या तुम दोनों साथ रहते हो, तो उसने अपनी जीभ निकाल के दांतो के बीच दबा के ज़ोर से सर हिलाया और बोली कि मेरे घरवाले ये सब लिवइन रिलेशन अलाउ नहीं करते। वो दोनों हफ्ते में सिर्फ एक दिन ही मिल पाते हैं। कुब्रा ने मेरी वाइफ को अपनी शादी का गाउन दिखाया जिसे वो शादी के लिये किराए पर लेगी। शादी का गाउन बहुत ही ज्यादा महंगा होने के कारण वो उसे खरीद नहीं सकती।

पिछले दस सालों में तुर्की में मेडिकल टूरिस्म बहुत तेजी से बढ़ा है। दुनियाभर से लोग यहाँ हेयर ट्रांसप्लांट, लिप्स सर्जरी, नाक की सर्जरी, हिप्स इम्प्लांट, ब्रेस्ट इम्प्लांट आदि करवाने आतें हैं— लेकिन समस्या ये है की ये सब इंडस्ट्री दो या तीन महानगरों में सिमटी हुई है, जिससे छोटे कस्बों और शहरों से युवाओं का इन महानगरों में ध्रुवीकरण होता है। नतीजा ये कि गाँव के गाँव खाली हुए जाते हैं। गाँवों में कैटल फार्मिंग और मछली पकड़ने के आलावा कुछ ख़ास रोजगार नहीं है।

इस्तांबुल में पांच-दस मंजिलों के बड़े-बड़े अस्पताल बने हुए हैं, जहाँ ये उपरोक्त सर्जरी और ऑपरेशन होतें हैं। एक दिन में सैकड़ों हेयर ट्रांसप्लांट और अन्य ऑपरेशन होतें हैं, जिससे काफी युवाओं को रोजगार मिलता है। सर्जरी कराने आये लोगो से ये हस्पताल वाले कई लाख रूपये फीस वसूल करतें हैं— लेकिन सिर्फ टॉप के सर्जन और डॉक्टरों को छोड़कर बाकी स्टाफ का भयंकर शोषण होता है। अकाउंटेंट, पेशेंट कोऑर्डिनेटर, फार्मेसिस्ट, टेक्नीशियन, रिसेप्शनिस्ट आदि को चिल्लर पकड़ा दी जाती है।

यही हाल टूरिज्म इंडस्ट्री का है और यही हाल टेक्सटाइल इंडस्ट्री का भी है। चाइना,बांग्लादेश के बाद तुर्की टेक्सटाइल इंडस्ट्री का सबसे बड़ा हब है— लेकिन ये पूरी इंडस्ट्री तुर्किश लोगों के भयंकर शोषण पर टिकी हुई है, जिसमे फैक्ट्री मालिक लोग तुर्किश जनता से प्रोडक्शन प्लांट में अमानवीय वर्किंग परिस्थितियों में खूनचूस काम करवाते हैं। अधिकतर इंडस्ट्री तुर्की के B क्लास शहरों में स्थित है, इससे इन शहरों के आस पास रहने वाले लाखों मजदूरों को जॉब मिलता है— लेकिन पगार के नाम पर स्थिति बहुत खराब है।

इसीलिये मैं अगला प्लान तुर्की के किसी छोटे शहर या कस्बे में रहने का बना रहा हूँ। हालाँकि वो एक अलग देश हैं और मुझे उनकी समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए— लेकिन मैं दुनिया के हर कोने में चमचमाती चीजों के पीछे की सच्चाई जानना चाहता हूँ। चाहे वो तुर्की हो पेरू हो या फ़्रांस या सिंगापुर। तुर्की के अधिकतर युवा तुर्की में नहीं रहना चाहते। बढ़ते इन्फ्लेशन, महंगाई और बेरोजगारी की वजह से उन्हें तुर्की में कोई भविष्य नज़र नहीं आता।

जर्मनी उनका सबसे पसंदीदा डेस्टिनेशन है। इंग्लिश सीखने से ज्यादा वो जर्मन भाषा सीख कर यहाँ से भाग जाना चाहते हैं। इसके बावजूद इंग्लिश हो या जर्मन— ये दोनों ही भाषाएँ खुद से पैसे लगा कर बाहर से सीखनी पड़ती हैं। स्कूलों में बहुत ही बेसिक पढ़ाया जाता है और अधिकतर पढ़ाई तुर्किश भाषा में ही है।

फाइनली हमारे जाने का दिन भी आ गया।
हमें होटल 9 बजे छोड़ना था, कुब्रा ने हमारे लिये ऑर्डिनरी कैब की बजाय लग्जरी गाड़ी करवा दी— सेम प्राइस में। वो लगतार व्यस्त चल रही थी, लेकिन जैसे ही हम गेट तक पहुंचे, वो अपना काम छोड़ कर आयी और भागते हुए मेरी वाइफ और बेटी के गले लिपट गयी और बोली की जब अगली बार आप आओगे तो शायद मैं जर्मनी शिफ्ट हो चुकी होउंगी।

मेरी वाइफ ने बोला कि हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं, लेकिन मिलने की कोई दिक्कत नहीं— हम तुमसे जर्मनी में ही आकर मिलेंगे। ये सुनकर वो खिलखिला उठी और आश्चर्य से पूछने लगी— क्या आप सच में आओगे, क्या आप सच में आओगे? और फिर उसने ख़ुशी के मारे मेरी वाइफ के दोनों हाथ पकड़ के पंजो के बल हलकी सी जम्प मार दी।

जाने से पहले वो ड्राइवर को अपनी भाषा में जाने क्या क्या इंस्ट्रक्शन देती रही— शायद हमारे कम्फर्ट के लिये किसी कम ट्रैफ़िक वाले रुट से जाने को बोल रही थी।
विदा होने पर कार से पीछे मुड़ कर देखा तो वो काफी देर तक दोनों हाथ हिला के हमें अलविदा कह रही थी। उसने मेरी बेटी को कुछ हेयर क्लिप्स और चॉकलेट दी— लेकिन अफ़सोस की हम उसे बिना कुछ दिये ही आ गए। मौका ही नहीं मिल पाया।

कुब्रा को लेकर मेरी वाइफ भी काफी इमोशनल हो गयी थी। वाइफ ने अपनी फीलिंग कुछ इस तरह बताई कि— उसे ऐसा लग रहा है जैसे वो अपनी किसी छोटी बहन को अकेले छोड़ कर बहुत दूर जा रही हो। कुब्रा मेरी वाइफ से बात करते वक़्त मेरी बेटी को अपनी बांहों में लपेटे रहती थी। उसने विदा के वक़्त बताया कि यहाँ हजारों टूरिस्ट आतें हैं, लेकिन आजतक किसी से इतनी आत्मीयता, इतना इतना लगाव उसे कभी नहीं हुआ जितना मेरी वाइफ और बेटी से उसे हुआ। ये चमत्कार कैसे हुआ? वो खुद भी हैरान थी और हम लोग भी हैरान थे।

कुब्रा जैसे लाखों लोगों की वजह से तुर्की की टूरिज्म इंडस्ट्री टिकी हुई है। वो लाखों लोग जो सुबह-सुबह अपने घरों से निकल पड़ते हैं इस शहर को चमकाने, सजाने के लिये और बिखर जातें हैं इस्तांबुल के हर कोने में टूरिस्टों के खैरे-मक़दम के लिये। जिनकी मेहनत की खुशबू आप इस्तांबुल के चप्पे चप्पे में महसूस कर सकतें हो।

चमचमाती सड़के, साफ़ सुथरा सुलतान मेहमत चौक, चौंध मारती इस्तिक़लाल स्ट्रीट, और इन्ही सड़कों इमारतों के कोनो में पीली जैकेट पहने झाड़ू ले कर सफाई को तैयार खड़े लोग, जो दिन रात इस शहर को चमकाने के लिये खटते हैं, ताकि आप लोगों की फोटो अच्छी आ सके, जिन्हे आप फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हो।

पिछले कुछ सालों में कोविड के बाद भयंकर बाढ़ और भूकम्प ने तुर्की को आर्थिक रूप से तोड़ कर रख दिया है। नतीजा ये हुआ कि अधिकाँश जनसँख्या रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की तरफ ध्रुवीकृत हुई है।
सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम पगार से भी कम पैसों में काम करने को तैयार, महंगाई और इन्फ्लेशन से बिलखते तुर्की के मेहनतकश लोगो की दाद देनी पड़ेगी, जिन्होंने अपनी जिजीविषा से इस्तांबुल को आज दुनिया की टॉप टूरिस्ट डेस्टिनेशन में जगह दिलवा रक्खी है।

इसलिये जब आप इस्तांबुल जाएँ तो "आया-सोफिया" के अंदर और बाहर सफाई करते, सर पर साफा बांधे कोई वृद्ध महिला या पुरुष दिखें तो उन्हें देख कर एक आत्मीय मुस्कान दें। उनके साथ फोटो खिचवाएं, और उनके काम की तारीफ करें। चमचमाते इस्तांबुल शहर की सुंदरता इन्ही लोगो की वजह से है।

तुर्की की मेहनतकश जनता को सलाम...

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