CRN-45
जिस हिसाब से दुनिया में बेतहाशा भीड़ बढ़ रही
है... कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है... लोग प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपभोग
करके उन्हें खत्म कर रहे हैं... और लगातार अपने लिये स्पेस बढ़ाते हुए बाकी सभी
क्रीचर्स के लिये जगह और मौके सीमित करते जा रहे हैं, जिनसे हमारा इको सिस्टम प्रभावित हो सकता
है... तो ऐसे में एक दिन कुदरत भी कोई मौका निकाल
कर बदला लेने पर उतर आये तो?
अपने देश को देखिये... देश के लोगों को देखिये...
क्या इन्हें एक नागरिक के तौर पर अपनी भूमिका की समझ है? क्या एक इंसान के तौर पर अपनी प्राथमिकताओं
का पता है इन्हें? आपको व्यवस्था वैसी ही मिलती है जैसे
आप होते हैं और अगर आप खुद ही समझदार और जागरूक नहीं हैं— तो यह तय है कि आपको
सिस्टम भी वैसा ही लापरवाह मिलेगा।
ऐसी हालत में कोई डेडली वायरस इनवेशन हो तो? फिर वह वायरस नेचुरल हो या बायोवेपन... उससे
ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारी व्यवस्था उस अटैक को संभाल पायेगी? क्या हमारे द्वारा चुनी गयी सरकारों ने हमें वह सिस्टम दिया है जो किसी
मेडिकल इमर्जेंसी को संभाल सके? शायद नहीं... कल्पना
कीजिये कि ऐसे ही किसी विश्वव्यापी वायरस संक्रमण के सामने हमारी व्यवस्था कैसी
लचर साबित होगी और करोड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होंगे।
सीआरएन फोर्टी फाईव ऐसे ही एक विश्वव्यापी
संक्रमण की कहानी है— जिसका शिकार हो कर दुनिया की तीन चौथाई आबादी खत्म हो गयी थी
और गिने-चुने विकसित देशों को छोड़ कर सभी देशों की व्यवस्थायें इस त्रासदी के आगे
दम तोड़ गयी थीं और त्रासदी से उबरने के बाद भी सभी सिस्टम कोलैप्स हो जाने की वजह
से ऐसी अराजकता फैली थी कि लाखों सर्वाइव करने वाले लोग फिर भी मारे गये थे... और
बचे खुचे लोगों में करोड़ों की भीड़ तो वह थी जो इस संक्रमण का शिकार हो कर अपनी
मेमोरी पूरी तरह खो चुकी थी और ताजे पैदा हुए बच्चे जैसी हो गयी थी।
यह वह मौका था जिसने उन सभी दबंग, बाहुबली और ताकतवर लोगों के लिये संभावनाओं के द्वार खोल दिये थे जो इस त्रासदी के बाद भी अपनी ताकत सहेजे रखने में कामयाब रहे थे। उन्होंने व्यवस्थाओं को अपने हाथ में लेकर उनकी सूरत बदल दी... देशों के बजाय ढेरों टैरेट्रीज खड़ी हो गयीं और उन्होंने बची खुची आबादियों को नियंत्रित कर लिया।
लेकिन क्या यह व्यवस्थायें भी हमेशा कायम रह सकती
थीं... एक न एक दिन तो कहीं न कहीं बगावत का बिगुल फूंका जाना तय था और यह कहानी
एक ऐसी ही बगावत की है, जो दुनिया को वापस पहले जैसा
बना देने की कूवत तो रखती है... लेकिन सभी पिछली गलतियों से सबक लेकर एकदम नये रूप
में... उस रूप में जो प्रकृति के साथ संतुलन बना कर चल सके और बाकी सभी क्रीचर्स
के सह-अस्तित्व को पूरा सम्मान देते हुए उन्हें उनके हिस्से का स्पेस और मौके
उपलब्ध करा सके और एक नया एडवांस डेमोक्रेटिक सिस्टम स्थापित कर सके।
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