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वो लड़की भोली भाली सी
"वो लड़की भोली भाली सी" नाम सुन कर रोमांटिक कहानी लगती है, लेकिन ऐसा है नहीं... यह कहानी यूं तो थ्रिल, रोमांच और सस्पेंस से भरी है, लेकिन चूंकि पूरी कहानी एक ऐसी लड़की पर है जिसकी जिंदगी कहानी के दौरान थ्री सिक्सटी डिग्री चेंज होती है, तो बस उसी बदलाव को इंगित करते हुए शीर्षक दिया है— वो लड़की भोली भाली सी। शुरुआत तो उसके भोलेपन और उसके शोषण से ही होती है लेकिन फिर मज़बूत होने के साथ वह बदलती चली जाती है।
अब कहानी चूंकि थोड़ी कांपलीकेटेड है तो शुरु करने से पहले सभी पाठकों के लिये कुछ बातों पर गौर करना जरूरी है, जिससे आपको सभी सिरों को समझने में मदद मिलेगी।
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ज़रा सा इश्क
अमूमन अपने देश में लोगों के दो क्लास मिल जायेंगे— एक वे जो ज़िंदगी को जीते हैं और दूसरे वे जो ज़िंदगी को गुज़ारते हैं। जो गुज़ारते हैं, उनकी ज़िंदगी बड़े बंधे-टके ढर्रे पर गुजरती है। रोज़ सुबह उठना, नाश्ता पानी करना, खाना लेकर बतौर दुकानदार, रेहड़ी-फड़ के कारोबारी, कारीगर, नौकरीपेशा, मजदूर काम पर निकल लेना और दिन भर अपने काम से जूझना। रात को थक-हार कर घर लौटना और खा पी कर सो जाना— अगले दिन फिर वही रूटीन। रोज़ वही रोबोट जैसी जिंदगी जीते चले जाना और फिर जब शरीर थक कर चलने से इनकार करने लगे तब थम जाना। जरा सा एडवेंचर या एंजाय, शादी या कहीं घूमने जाने के वक़्त नसीब होता है और वे सारी ज़िंदगी रियलाईज नहीं कर पाते कि वे ज़िंदगी को जी नहीं रहे, बल्कि गुज़ार रहे हैं।
सुबोध ऐसे ही एक परिवार का लड़का है।
दूसरे वे होते हैं जो जिंदगी को जीते हैं, क्योंकि वे हर सुख सुविधाओं से लैस होते हैं। उन्हेें जीविका कमाने के लिये दिन रात अपने काम-धंधों में, नौकरी में किसी ग़रीब की तरह खटना नहीं होता। जिनके हिस्से की मेहनत दूसरे करते हैं और जो बिजनेस और बढ़िया नौकरी के बीच भी अपने लिये एक वक़्त बचा कर रखते हैं, जहां वे अपनी ज़िंदगी को जी सकें। एंजाय कर सकें। हर किस्म के एडवेंचर का मज़ा ले सकें। उनके लिये जिंदगी कोई कोर्स नहीं होती कि बस एक ढर्रे पर उसका पालन करना है— बल्कि वह दसियों रंगों के फूलों से भरे गुलदस्ते जैसी है, जहां हर दिन एक नये फूल की सुगंध का आनंद लिया जा सकता है।
ईशानी ऐसी ही लड़की है।
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मिरोव
सोचिये कि एक दिन आप नींद से जागते हैं और पाते हैं कि आप उस दुनिया में ही नहीं हैं जो आपने सोने से पहले छोड़ी थी तो आपको क्या महसूस होगा… सन दो हजार बत्तीस की एक दोपहर न्युयार्क के मैनहट्टन में एक सड़क के किनारे पड़ी बेंच पर जागे एडगर वैलेंस के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था।
वह जिस जगह को और जिस दुनिया को देख रहा था वह उसने पहले कभी नहीं देखी थी, जबकि वह अपने आईडी कार्ड के हिसाब से न्युयार्क में रहने वाला एक अमेरिकी था… उसे यह नहीं याद था कि वह अब कौन था लेकिन धीरे-धीरे उसे यह जरूर याद आता है कि वह तो भारत के एक गांव का रहने वाला था और वह भी उस वक्त का जब मुगलिया सल्तनत का दौर था और अकबर का बेटा जहांगीर तख्त नशीन था।
उसे न सामने दिखती चीजों से कोई जान पहचान थी और न ही खुद की योग्यताओं का पता था लेकिन फिर भी सबकुछ उसे ऐसा लगता था जैसे वह हर बात का आदी रहा हो जबकि उसके दौर में तो न यह आधुनिक कपड़े पहनने वाले लोग थे, न गाड़ियां और न उस तरह की इमारतें। उसने कभी तलवार भी न उठाई थी मगर उसका शरीर मार्शल आर्ट का एक्सपर्ट था।
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सावरी
यह कहानी सौमित्र बनर्जी की आत्मकथा के रूप में लिखा एक ऐसा दस्तावेज है, जो अंत में एक रोमांचक मोड़ के साथ जब अपनी परिणति पर पहुंचता है तो इस कहानी के उस मुख्य पात्र को यह पता चल पाता है कि रियलिटी में वह अपने कमरे के अंदर अपने बेड पर सोता ही रहा था, लेकिन एक वर्चुअल दुनिया में उसने एक ऐसे रहस्यमयी शख़्स सौमित्र बनर्जी के जीवन के बारे में सबकुछ जान लिया था— जो एक अभिशप्त जीवन को जीते हुए उसी के ज़रिये अपने जीवन से मुक्ति पाता है।
कहानी में जो भी है, वह भले एक आभासी दुनिया में चलता है लेकिन कुछ अहम किरदारों का गुज़रा हुआ अतीत है— जिसमें क़दम-क़दम पर रहस्य और रोमांच की भरपूर डोज मौजूद है। सभी कैरेक्टर अपनी जगह होते तो वास्तविक हैं लेकिन वे रियलिटी में रहने के बजाय दिमाग़ के अंदर क्रियेट की गई एक वर्चुअल दुनिया में रहते हैं, जहां उनकी शक्तियां एक तरह से असीमित होती हैं।
यह एक ऐसे मैट्रिक्स की कहानी है, जो बाहर की हकीक़ी दुनिया में नहीं चलता, बल्कि दिमाग़ के अंदर बनाई गई ऐसी दुनिया में चलता है— जहां कहानी के मुख्य ताकतवर पात्र दूसरे किरदारों को उनकी मर्ज़ी के खिलाफ अपनी उस दुनिया में खींच लेते हैं, जहां वे उनके साथ रोमांस भी कर सकते हैं और उन्हें शारीरिक चोट भी पहुंचा सकते हैं। यहां तक कि वे उनकी जान भी ले सकते हैं।
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आतशीं
इस कहानी से सम्बंधित कुछ बातें... जो एक पाठक के तौर पर आपके लिये पहले से जानना जरूरी है ताकि आप पहले से इस उलझी हुई कहानी के लिये मानसिक रूप से तैयार हो सकें।
पहली चीज़ तो यह है कि यह कहानी काफी लंबी है तो इत्मीनान के साथ पढ़ें.. कोशिश करूंगा कि एक एपिसोड में ज्यादा से ज्यादा कंटेंट परोस सकूं लेकिन फिर भी मान के चलिये कि इसके सौ से ऊपर एपिसोड जायेंगे।
दरअसल यह एक महागाथा है इंसान और जिन्नात के बीच बनी उस कहानी की, जो जाहिरी तौर पर आपको अलग और अनकनेक्टेड लग सकती है लेकिन हकीक़त में दोनों के ही सिरे आपस में जुड़े हुए हैं। इंसान की बैकग्राउंड पख्तूनख्वा की है, जहां आप पख्तून पठानों की सामाजिक संरचना के साथ उनके आपसी संघर्ष और जिन्नातों के साथ उनके इंटरेक्शन के बारे में पढ़ेंगे और जिन्नातों की बैकग्राउंड पश्चिमी पाकिस्तान से लेकर तुर्कमेनिस्तान, सीरिया और ओमान के बीच रेगिस्तानी और सब्ज मगर बियाबान इलाकों में बसी उनकी चार अलग-अलग सल्तनतों की हैं।
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ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिये टेन मिलियन डॉलर की ईनामी रकम वाला एक रियलिटी शो 'द ब्लडी कैसल' लांच होता है जो हॉरर थीम पर होता है। यह शो सेशेल्स के एक निजी प्रापर्टी वाले हॉगर्ड आइलैंड पर आयोजित होता है जहां हांटेड प्लेस के तौर पर मशहूर किंग्समैन कैसल में कंटेस्टेंट्स को सात दिन और सात रातें गुजारनी होती है और जो भी कंटेस्टेंट सबसे बेहतर ढंग से सामने आने वाली हर चुनौती से लड़ेगा, उस हिसाब से उसे वोट मिलेंगे... सबसे ज्यादा वोट पाने वाला विनर होगा।
'द ब्लडी कैसल' टीम कैसल या आइलैंड के डरावने माहौल के सिवा भी अपनी तरफ से विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल के साथ उन्हें डराने की हर मुमकिन कोशिश करेगी कि उनकी हिम्मत का सख्त इम्तिहान लिया जा सके। उनके हर पल को रिकार्ड करने के लिये कैसल समेत न सिर्फ़ पूरे आइलैंड पर बेशुमार कैमरे होंगे बल्कि ड्रोन कैमरों की मदद भी ली जायेगी और उनकी सांसों पर भी कान बनाये रखने के लिये उनके गलों में एडवांस किस्म के रेडियो कॉलर पहनाये जायेंगे। उन कंटेस्टेंट्स से टीम कोई भी डायरेक्ट संवाद नहीं करेगी, न ही उन्हें किसी तरह की मदद उपलब्ध कराई जायेगी। कंटेस्टेंट्स को यह सात दिन अपने ढंग से बिताने के लिये पूरी छूट होगी और वे चाहें तो रेप और मर्डर तक कर सकते हैं।
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कलंगुट बीच स्थित होटल गैब्रिएल से सुबह-सवेरे जब मधुरिमा तैयार हो कर निकली तो इरादा कुछ खास नहीं था— बस तट पर भटकने तक का ही ख्याल था… क्योंकि न उसे गोवा के बारे में कोई खास जानकारी ही थी और न उसका जीवन इस तरह का रहा था कि वह ऐसी विज़िट को लेकर कोई प्लान बना पाने में सक्षम हो। वह तो बस अपनी एक फैंटेसी पूरी करने निकली हुई थी।
बदन पर एक ब्लैक कलर का प्लाज़ो था तो ऊपर एक छाती भर कवर करने वाला पिंक टाॅप और उसके ऊपर एक ढीली लाईट अक्वा ग्रीन कलर की शर्ट डाल ली थी, जिसके बटन तो सारे खुले थे लेकिन नीचे पेट पर दोनों पल्लों के बीच नाॅट बांध ली थी। आँखों पर स्टाइलिश गाॅगल चढ़ा था तो हाथ में एक फैंसी हैंडबैग। उसकी उम्र के साथ नार्थ इंडिया में शायद यह हुलिया सूट न करता मगर गोवा में यह सामान्य बात थी— तो कोई भी सिर्फ इस बात के पीछे नोटिस नहीं करने वाला था।
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कसक
"वह बात नहीं है माँ— कभी इतना लंबा सफर अकेले किया नहीं है न, तो घबराहट सी हो रही है। उनका क्या है— बैठे-बैठे फरमान जारी कर दिया कि बस पकड़ के चली आओ। अब जिसे जाना है, देखना तो उसे है... नहीं माँ, सुल्तानपुर से लखनऊ तक का ठीक है— ढाई-तीन घंटे की बात रहती है लेकिन दिल्ली? कहते तो हैं कि सात-आठ घंटे में पहुंच जायेंगे लेकिन लंबे सफर में भला कब इस बात की गारंटी रहती है। कब, कहां जाम में फंस जायें, कब रास्ते में कोई बात हो जाये... कसकअरे क्या माँ, शुभ-अशुभ... न बोलने वालों के साथ परेशानियां नहीं आतीं क्या? अकेले जाऊंगी तो यह सब ख्याल तो आयेंगे ही। नहीं... नहीं माँ, कहां छुट्टी मिल पा रही रवि को। वो तो कह रहे थे कि फ्लाईट से चली आओ, पैसे की चिंता नहीं है— लेकिन हम कहां हवाई जहाज पे बैठेंगे। रवि साथ होते तो बात अलग थी— अकेले तो न बाबा न। अनाड़ियों की तरह चकराते फिरेंगे... उससे तो फिर बस ही ठीक है।" वह फोन कान से लगाये अपनी ही धुन में बोले चली जा रही थी और सूटकेस को हैंडल से खींचते प्लेटफार्म से लगी बसों पर लगी स्लेट पढ़ती जा रही थी, जिन पर उनकी मंजिलें लिखी थीं।
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वो कौन थी
हरेक की जिंदगी में कुछ बातें, कुछ लम्हे, कुछ किस्से, कुछ घटनायें ऐसी जरूर होती हैं जो उसकी मेमोरी में हमेशा के लिये सुरक्षित हो जाती हैं। कुछ ऐसी घटनायें, जहां आखिर में लगा सवालिया निशान कभी न खत्म हो पाये— ऐसी न भुला सकने वाली स्मृतियों में अपना एक खास मकाम बना कर रखती हैं।
अब चूंकि मैं पुलिस की नौकरी में रहा हूं, जहां पूरे कैरियर के दौरान जाने कितने अनसुलझे केस भी मेरी स्मृतियों में दर्ज हुए हैं तो ऐसा नहीं है कि मैं सवालिया निशान छोड़ जाने वाली घटनाओं में सभी को याद रख सकूं— हां, लेकिन कुछ घटनायें तो फिर भी होती हैं जो अपना अलग ही मकाम रखती हैं। ऐसी ही एक घटना है— जब भी कभी मेरे सामने भूत-प्रेत, आत्मा वगैरह की कोई बात हो, तो मेरी स्मृतियों में ऐसे हलचल मचा देती है जैसे किसी झील के शांत पानी में कोई पत्थर फेंक दिया गया हो।
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गुमराह
क्षितिज पर पूरे प्रकाश के कारण गिने चुने सितारे ही बाकी रह गये हैं— चन्द्रमा की शीतल रश्मियों में नहाया वह समूचा जंगली क्षेत्र कुछ भयावह सा लग रहा है। हलकी-हलकी पुरवाई चल रही है। खामोश खड़े वृक्ष थोड़ी थोड़ी देर में हिल जाते हैं।
यह मैलानी के एक गावं कंचनखेड़ा से जुड़ा जंगल है। गावं की सीमा से सटे तमाम खेत हैं, जहां अधपके गेहूं की फसल खड़ी है— फागुन चल रहा है। हवा में थोड़ी ठंडक है… जंगल में झींगुरों, तिलचट्टों की आवाज़ सबसे ज्यादा गूँज रही है या फिर उन नेवले के बच्चों की, जो एक खेत में खेल रहे हैं।
गावं वालों ने खेत की सुरक्षा के लिये जंगल की ओर बबूल के कांटों की लम्बी बाड़ लगा रखी है, किन्तु सांभरों, चीतलों ने उसमे जगह जगह छेद कर लिये हैं और रात होते ही वह अपना रुख खेत की ओर कर लेते हैं। आधी रात के इस समय खेतों में कई चीतलें मौजूद हैं, जो गेहूं की हरी पत्तियां चुनने में जुटी हैं। एक ओर मोटी गर्दन और बारह सींगों वाला झाँक भी खामोश खड़ा है। वह हवा से बू लेने की कोशिश कर रहा है, या अपने कानों से सुनने की— कहा नहीं जा सकता।
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रोज़वेल मेंशन
अरुण के लिये वह जगह तो बड़ी अच्छी थी, जहां चारों तरफ हरे-भरे हरियाली से आच्छादित पहाड़ों का मनोरम नजारा था और दूर बर्फ से ढंकी चोटियां ऐसे भ्रम देती थीं जैसे आकाश पर किसी कुशल चित्रकार ने कूची फेर दी हो। मौसम उसके अनुकूल था तो हल्की ठंड से भी कोई शिकायत नहीं थी। यह जगह हिमाचल के ऊपरी इलाके में आती थी जहां पहाड़ों के एतबार से मध्यम आकार की आबादी थी और पर्यटन के नजरिये से यह जगह तेजी से विकसित हो रही थी।
वह एक सिविल इंजीनियर था और अपनी कंपनी के काम से यहां आया था— कंपनी वहां अपना एक प्रोजेक्ट शुरू कर रही थी, जिस सिलसिले में अरुण को दिल्ली से यहां आना पड़ा था और कुछ महीनों के लिये उसे यहीं कयाम करना था।
अब वह किसी तरह ऊना तक ट्रेन और आगे बस के सहारे यहां तक पहुंच तो गया था लेकिन यहां आकर एक समस्या खड़ी हो गई थी। अब यहां आकर एक समस्या खड़ी हो गई थी कि फिलहाल कंपनी की तरफ से उसके रहने का इंतज़ाम नहीं हो पाया था। अपनी तरफ से उन्होंने रोज़वेल मेंशन नाम की जिस जगह का चयन किया था, फर्दर इन्क्वायरी में वह जगह उसके रहने के लिहाज से ठीक नहीं निकली थी तो एक दो दिन उसे किसी तरह खुद के भरोसे गुजारने को कहा गया था कि इस बीच कोई और इंतज़ाम कर लिया जायेगा।
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