रोसेटा स्टोन
रोसेटा स्टोन क्या है?
रचनात्मक विचार कभी नहीं मरते बस अपना रूप बदलते रहते हैं, जब तक इंसान ने बोलना नहीं सीखा वह इशारों के माध्यम से दूसरों तक पहुंचते रहे, भाषा के विकसित होने के बाद यह आसानी से दूसरों तक पहुंचे।
कुछ विचार इतने अच्छे लगते थे लोगों को, कि शब्द विकसित ना होने के बावजूद वह इन्हें गुफ़ा की दीवारों पर चित्रों के रूप में सहेज लेते थे, आगे चल कर शब्द बना लेने के बाद मिट्टी या पत्थर की शिलाओं पर इनको खोद देते थे।
फिर दौर आया पेड़ों की छाल और पत्ते इस्तेमाल होने लगे, फिर किसी तरह कागज बनने लगा, 869 AD में पहली किताब चीन में मशीन से छपी और अब आज की दुनिया में विचारों का आदान प्रदान कितना आसान हो चुका है सब जानते हैं।
मिस्र के पिरामिड में भी दीवारों पर चित्रों की भाषा में ढेरों लेख मिले थे लेकिन साल्हा साल की मेहनत के बावजूद एक्सपर्ट्स उन को पढ़ ना पाए थे, 1799 AD में नील नदी के किनारे नेपोलियन की फौज को एक पत्थर नस्ब किया हुआ मिला जो किसी फ्रांसीसी राजा की याद में लगाया गया था।
यह 196 BC का था, इस में एक ही पत्थर पर तीन भाषाओं में एक ही इबारत लिखी गई थी, मिस्री चित्रों की भाषा में, मिस्री शब्दों की भाषा में और यूनानी भाषा में।
एक फ़्रांसीसी स्कॉलर "शेंपोलून" ने बीस साल के दिनों रात काम के बाद आख़िर मिस्र की चित्रों वाली ज़बान को पढ़ने में कामयाबी हासिल कर ली और फिर मिला पिरामिड्स से इल्म का अथाह खज़ाना!
यह पत्थर"रोसेटा स्टोन" के नाम से आज भी ब्रिटिश अजायब घर में रखा है!
मोहन जोदड़ो और हराप्पा के लेख अभी तक नहीं पढ़े जा सके हैं,कोशिशें जारी हैं जिस दिन पढ़ लिए जाएंगे उस दौर के बारे में बहुत कुछ पता लगेगा!!
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