प्रोग्राम्ड यूनिवर्स 2
आस्तिकता इस विषय की सबसे
प्राचीन थ्योरी है
आस्तिकता इस विषय की सबसे प्राचीन थ्योरी है— उसकी वजह भी है कि प्लेनेट अर्थ पर इंसान के सर्वाइवल की यह पहली शर्त थी।
जरा एक पल ठहर के सोचिये कि अगर इंसान ने सिविलाइजेशन के शुरुआती दौर में इसे न
अपनाया होता तो भोजन और प्रजनन के प्राथमिक उद्देश्य की पूर्ति के लिये शक्ति ही
एकमात्र हथियार थी और सदियों पीछे तक मानवता को रक्तरंजित करते शक्ति प्रदर्शन के
अनगिनत धब्बे मिलेंगे। कोई न मानता किसी ईश्वर को— धर्म से
जुड़े अच्छा या बुरा होने के डर से वंचित होता तो हर ताकतवर, अपने
से कमजोर को मार कर उसके संसाधन छीन रहा होता और चूँकि सभी समान ताकत के नहीं होते
तो इसी प्रतिस्पर्धा का पालन करते सारे लड़ भिड़ कर पहले ही खत्म हो चुके होते।
बहरहाल— अब बात करें सृष्टि की रचना के
उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पहली संभावना की.. कि किसी ईश्वर ने सबकुछ रचा है।
इस थ्योरी का सबसे कमजोर पहलू उससे जुड़ी धारणायें, मोक्ष
मगफिरत जैसी अवस्था और दोजख जन्नत जैसी अवधारणायें हैं— क्योंकि
एक बार भी आप दिमाग खोल कर इस स्पेस में झांक लेंगे और मात्र ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स
के अकॉर्डिंग अपनी माइक्रो बैक्टीरिया से भी गयी गुजरी स्थिति का अंदाजा लगा लेंगे
तो आपकी सारी मान्यतायें आपकी आंखों के सामने ही धूल धूसरित हो जायेंगी।
जब आप ऐसा करेंगे तो एक सवाल आपके आगे आ कर खड़ा हो जायेगा
जिसका जवाब आपको दुनिया का कोई आलिम, कोई धार्मिक ज्ञानी
नहीं दे पायेगा कि ईश्वर के लिये अगर इंसान ही सबसे अहम था और उसने यह दुनिया
इंसान के लिये बनाई (जैसी कि धार्मिक मान्यता है) तो फिर इंसान तो खरबों विशाल
ग्रहों वाले जाल में से बस एक ग्रह पर ही कीड़े मकोड़ों की तरह मौजूद है— तो फिर यह अरबों आकाश गंगायें और उनमें मौजूद खरबों बेजान निर्जन ग्रह भला
किसलिये बनाये? इंसान तो इतना भी सक्षम नहीं कि अपने सौर
सिस्टम से बाहर ही निकल पाये— फिर इससे बाहर लाखों सौरमंडलों
से भरी गैलेक्सी, और अरबों गैलेक्सीज से भरा ऑब्जर्वेबल
यूनिवर्स बनाने की क्या तुक थी?
Limitlessness of Uiverse |
इस दुनिया में जितने रेत के कण हैं— या
पृथ्वी पर अतीत से ले कर वर्तमान तक जितने भी इंसान पैदा हुए हैं, उनसे कहीं ज्यादा प्लेनेट्स हैं इस यूनिवर्स में— और
उस पर यह दावा कि हमने दुनिया/सृष्टि (धार्मिक नजरिये से लफ्ज 'दुनिया' या सृष्टि का मतलब पूरा यूनिवर्सल सिस्टम
होता है) इंसानों के लिये बनाई है— आप सोच सकते हैं कि कितना
फनी है।
क्या वाकई किसी ने सृष्टि
को बनाया है?
बावजूद इसके— उनकी यह धारणा कि कोई है
जिसने इस सृष्टि को बनाया है, सिर्फ उनकी अपनी गढ़ी
मान्यताओं, अवधारणाओं की बिना पर खारिज नहीं की जा सकती। हो
सकता है कोई वाकई क्रियेटर हो, जिसने इस पूरे सिस्टम को
बनाया हो और किसी एक्सपेरिमेंट के तहत इसे ऑटोमोड में चलने दे रहा हो— लगभग हॉलीवुड मूवी 'मैट्रिक्स' की तरह— फिर? यहां आप यह सवाल
उठा सकते हैं कि फिर धार्मिक दावों के अनुरूप वह खुद जन्मा नहीं हो सकता, न सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान हो सकता है।
तो इसका जवाब यह है कि यह सारे दावे भी तो इस दुनियाबी ईश्वर
को गढ़ने वाले इंसानों की तरफ से ही आये हैं— कौन सा उसने
खुद सामने आ कर कोई दावा किया है। बेशक अगर कोई क्रियेटर है तो उसे पैदा करने वाला
या बनाने वाला भी जरूर होगा और अगर हम बस किसी एक्सपेरिमेंटल प्रोग्राम का हिस्सा
भर हैं तो यह भी है कि उसके सर्वज्ञ या सर्वशक्तिशाली होने की धारणायें सिरे से
गलत हैं— क्योंकि वह तो खुद किसी निष्कर्ष की उम्मीद में
प्रयोग कर रहा है।
तो कहने का मतलब यह है कि यह संभावना किसी नास्तिक बंदे के
नजरिये से चूँकि सिरे से खारिज है तो यह समझिये कि यूनिवर्स का विश्लेषण करने में
उन्होंने जो भी तरीका अख्तियार किया, उसकी व्यापकता ही
संदिग्ध हो गयी— दूसरी तरफ आस्तिकों के इस तर्क की पुष्टि तो
करती है कि कोई है, जिसने सबकुछ बनाया लेकिन उसे ले कर गढ़ी
गयी उनकी सारी मान्यतायें सिरे से धराशायी हो जाती हैं।
अगर मैं कहूँ कि धार्मिकों की यह लाईन कि 'हमने (ईश्वर ने) सब तुम्हारे लिये बनाया', असल में
भविष्य का एक संकेत है कि अरबों खरबों बेकार निर्जन पड़े ग्रह, खामखाह धधकते सूर्य— सब इंसान के लिये हैं तो सुन कर
आपको बड़ा अजीब लगेगा लेकिन अगर थोड़ा गहराई से सोचेंगे तो यह धारणा आपको उस 'क्यों' के हल की तरफ भी ले जा सकती है जो 'इंसान' और यूनिवर्स के खरबों बेजान प्लेनेट्स के
अस्तित्व के माथे पर चस्पां है।
आखिर हम कितनी सेरेब्रल
कैपेसिटी इस्तेमाल करते हैं
एक थ्योरी है कि हम इंसान असल में वन हंड्रेड बिलियन
न्यूरान्स से बना दिमाग रखते तो हैं लेकिन हम अब तक अपनी कितनी सेरेब्रल कैपेसिटी
यूज करने की हालत में पंहुच पाये हैं, इसे ले कर जो एक ‘मिथ’
है— वह यूँ है कि इंसान ने जितनी भी मानव विकास यात्रा की है
वह दस से पंद्रह पर्सेंट यूज पर की है— कुछ लोग असमान्य तौर
पर ज्यादा बुद्धिमान हो सकते हैं, उनकी इंडीविजुअल कैपेसिटी
सत्रह पर्सेंट तक हो सकती है। बाकी कल्पना के मुताबिक जब हम बीस प्रतिशत सेरेब्रल
कैपेसिटी यूज कर पायेंगे तब हमारी बॉडी पर पूरी तरह हमारा नियंत्रण होगा।
तीस से पचास प्रतिशत की क्षमता तक पंहुचने पर हम दूसरों की
बॉडी पर, मेटल पर, आसपास दिखती हर चीज
पर अपना नियंत्रण कर पायेंगे— हर सजीव निर्जीव का स्कैन,
एक्सरे कर पायेंगे। शरीर के अंगों को रीप्रोड्यूस कर पायेंगे,
कोई भी रूप धारण कर पायेंगे और एक तरह से अमरत्व को छू लेंगे। साठ
प्रतिशत तक पंहुचने पर हम लगभग कंप्यूटर हो जायेंगे— किसी भी
चीज को देख कर छू कर उसकी सारी इन्फार्मेशन पा लेंगे। तरंगों से जुड़ी लगभग हर चीज
पर नियंत्रण पा लेंगे और अपने आसपास की हर चीज को अपने हिसाब से चला लेंगे।
सत्तर से अस्सी प्रतिशत तक हम लगभग सुपर कंप्यूटर हो जायेंगे
और दुनिया की कोई भी चीज हमारे पंहुच और नियंत्रण से बाहर नहीं रहेगी, जबकि नब्बे से ऊपर जाने पर हम मैटर और एनर्जी से कनेक्ट कर लेंगे और आदि
से अब तक पृथ्वी से ले कर ब्रह्मांड तक का सारा चिट्ठा हमारे सामने होगा और हम हर
चीज पर प्रभावी होंगे। हालाँकि उस सूरत में इंसानी शरीर पीछे छूट जायेगा और हम
शायद खुद ब्रह्म ऊर्जा में तब्दील हो जायेंगे— जिसे ईश्वर की
संज्ञा दी जा सकती है।
Use of Brain |
चूँकि इस थ्योरी को प्रमाणित नहीं किया जा सकता तो आप बेशक
ठुकरा सकते हैं लेकिन प्रतिशत के आंकड़े हटा दें तो कुछ हद तक तो यह तार्किक है ही
कि एक साईज का दिमाग होते हुए भी कोई जीनियस, कोई बुद्धू या
कोई आइंस्टीन तो कोई शेखचिल्ली कैसे हो जाता है। या इसी दिमाग के साथ इंसान जंगली
आदिवासी भी थे और इसी दिमाग के साथ अब वे कंप्यूटर और रॉकेट बना रहे हैं।
निकोलई कार्द्शेव स्केल पर
सिविलाइजेशन
सेपियंस की तरक्की के हिसाब से सेरेब्रल
कैपेसिटी की संभावना को समाहित करते हुए अगर हम निकोलई कार्दशेव स्केल पर अपनी
सिविलाइजेशन के विकास को कैटेगराईज करें तो तस्वीर यूँ बनती है..
कि वर्तमान में हम टाईप जीरो सिविलाइजेशन हैं लेकिन सौ से
डेढ़ सौ साल बाद हम टाईप वन सिविलाइजेशन होंगे जिसे प्लेनेटरी सोसायटी कहा जायेगा।
यह सभ्यता अपने ग्रह तक पंहुचने वाली अपने तारे की सौ प्रतिशत ऊर्जा का संचयन और
उपभोग कर सकेगी और इसके उपयोग से वे प्लेनेट की शक्ल बदल देंगे। मौसमों पर
नियंत्रण, प्राकृतिक आपदाओं का सटीक आकलन, टेराफार्मिंग जैसी सुविधायें उनके पास होंगी और वे अपने सोलर सिस्टम के
दूसरे ग्रहों तक की यात्रा करने में सक्षम होंगे।
फिर हजार से तीन हजार साल के बीच वे टाईप टू सिविलाइजेशन
यानि स्टेलर सोसायटी में कनवर्ट हो जायेंगे। यानि इतने सक्षम हो जायेंगे कि अपने
सोलर सिस्टम के तारे को डायसन स्ट्रक्चर (सोलर पैनल से) से कवर करके उसकी संपूर्ण
ऊर्जा को सोख कर अपने ग्रह या जहां भी पॉवर स्टेशन हो— वहां
ट्रांसफर कर सकेंगे और सूर्य पर होने वाले फ्यूजन रियेक्शन को भी नियंत्रित कर
सकेंगे। वे पूरी गैलेक्सी में यात्रा कर सकेंगे— अलग-अलग
प्लेनेट्स पर कॉलोनिया बसा सकेंगे और अपने स्पेस में उनका प्रभुत्व होगा।
अगले एक लाख साल बाद वे टाईप थ्री सिविलाइजेशन यानि
गैलेक्टिक या इंटरस्टेलर सोसायटी में कनवर्ट हो जायेंगे— मतलब
वे इस गैलेक्सी के सभी तारों की ऊर्जा सोख पायेंगे और फिर उनकी पंहुच चौवन
गैलेक्सीज वाले पूरे लोकल ग्रुप ऑफ गैलेक्सीज तक होगी। वे यात्रा के लिये ऐसी
ट्रांसमिटिंग डिवाईस बनाने में सक्षम होंगे जिससे लाखों प्रकाशवर्ष की दूरी भी कुछ
सेकेंडों या घंटों में तय की जा सके। अलग-अलग आकाशगंगाओं में उनकी कॉलोनियां
होंगी।
Written by Ashfaq Ahmad
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