धर्म यात्रा 9

धर्म यात्रा 9

तब पृथ्वी एक चपटे चबूतरे के सामान थी


कहने का मतलब उस वक्त आम तौर पर धारणा यही थी कि पृथ्वी चपटी चबूतरे समान थी और उसके पार समुद्र था जहां उनके हिसाब से दुनिया खत्म हो जाती थी। पृथ्वी के समुद्र में डूबने और विष्णु के वरह अवतार लेकर पृथ्वी को निकालने की कथा या हनुमान जी के सूर्य को निगल लेने की कहानी इसी अवधारणा पर थी। आस्मान एक गैसीय छत थी जहां नक्षत्र और सूर्य किसी अलौकिक चमत्कार से टिके हुए थे, जो इस जमीन की परिक्रमा करते थे— ज्योतिष इन्हीं नक्षत्रों की गणना पर आधारित था। अब ऐसे में ईश्वर या देवता इंसानों से अलग पहाड़ों पर ही रह सकते थे।
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In Mythology

  कुरान तक आते-आते थोड़ी बुद्धि विकसित हो चुकी थी तो पुराने मसाले को अडॉप्ट करते हुए भी उन्होंने एडिट करके सबकुछ जमीन से हटा दिया— बाकी आस्मान को लेकर फिर भी उसी अवधारणा के साथ स्टिक रहे और बाकायदा मल्टी स्टोरी बिल्डिंग की तरह उसके सात तल तय कर दिये, जहां छः तक कुछ पैगम्बरों को अलॉट करके सातवें पर ईश्वर को बिठा दिया।

  जब इस नजर से कुरान की वह सब आयतें जो आस्मान को लेकर कही गयीं है, साफ तौर पर समझ में आ जायेंगी लेकिन अब जब पृथ्वी और यूनिवर्स का कांसेप्ट क्लियर हो चुका है तो उन आयतों को विज्ञानसम्मत बनाने के लिये कहीं के कुलाबे कहीं मिला दिये जाते हैं। साथ ही एडिटिंग न कर पाने की बाध्यता के चलते ब्रैकेट बना कर अपने मतलब की बात साबित कर लेते हैं— मसलन कहा यह जाता है कि सब सूरज तारे अपना सफर पूरा कर रहे हैं— यानि उसी अवधारणा के हिसाब से, लेकिन आज वालों ने बीच में ब्रैकेट लगा कर मदार/कक्ष लिख दिया, जिससे साबित हो सके कि हमने तो पहले ही बता दिया था कि तारे और ग्रह सब अपने कक्ष पर परिक्रमा कर रहे हैं।

हदीसों की विश्वसनीयता कितनी है

  हालाँकि इसमें कई अवैज्ञानिक हदीसें (आस्मान से संबंधित, मेराज, बुर्राक, सूरज के सिंहासन के पीछे छुपने, ग्रहण के टाईम डरने, विशेष नमाज पढ़ने, कयामत की निशानी मानने जैसी)— रोड़ा बनती हैं तो उनसे निपटने के लिये अब एक नया शोशा गढ़ लिये हैं कि एक कमेटी हदीसों की जांच कर रही है कि फलाँ हदीस किन किन रावियों (हदीस आगे बढ़ाने वाले) से गुजरी है और उनकी क्रेडिब्लिटी क्या है और उनका सहारा ले कर किन हदीसों/वाकयों को रद्द किया जा सकता है।

  यानि नौवीं शताब्दी में लिखी गयी हदीसों के रावियों की क्रेडिब्लिटी तब न लोगों की समझ में आई— बारह सौ साल बाद अब उनकी क्रेडिब्लिटी चेक की जा रही है।
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Galileo

  पृथ्वी से बाहर की दशा जानने का काम गैलीलियो के दौर में हुआ, जब लिपर्शे की साधारण दूरबीन को परिष्कृत कर के गैलीलियो ने स्पेस में झांकना शुरू किया— हालाँकि इस सिलसिले को पंद्रहवीं शताब्दी में पोलैंड के खगोल विज्ञानी निकोलस कॉपरनिकस ने शुरू किया था, जिसे आठ साल जेल में बंद रह कर और अंततः आग में जल कर ब्रूनो ने आगे बढ़ाया और आखिरकार गैलीलियो ने कॉपरनिकस की थ्योरी पर मुहर लगा दी।

  और उसके बाद से धार्मिक विद्वान (खासकर हिंदू मुस्लिम) लगातार तड़प रहे हैं कि किन कोशिशों और किन प्रतीकात्मक वाक्यों को तोड़ मरोड़ कर यह साबित कर सकें कि कॉपरनिकस, ब्रूनो और गैलीलियो ने तो बहुत बाद में बताया— हम तो हजारों साल पहले यह बता चुके थे।

  यहां दो मजेदार तथ्य आप और नोट कर लीजिये— बाईबिल के दोनों संस्करणों में जो आदम से ले कर अब्राहम तक वंशावली बताई है, उसके हिसाब से गणना करेंगे तो सृष्टि की रचना ज्यादा से ज्यादा दस हजार साल पहले ही हुई मिलेगी— जबकि कई लाख साल पहले तक के मानव जीवाश्म और छः करोड़ साल पहले के डायनासोर के जीवाश्म तक मिल चुके हैं..

  और दुनिया के सारे धार्मिक ग्रंथ भले दुनिया में इंसानी सभ्यता सृष्टि की रचना के साथ शुरु हुई बताते हों लेकिन मैमथ और डायनासोर जैसे भारी भरकम जानवरों के बारे में एक लफ्ज नहीं बता पाते— जिनका कभी पृथ्वी पर एकछत्र राज था।

फिरौन की ममी और मुसलमान

  इस्लामिक वर्ल्ड में एक कहानी और भी बड़ी फेमस है, जो कि कुरान के एक चमत्कार से रिलेटेड है कि कैसे दुनिया को इबरत देने के लिये खुदा ने फिरौन की लाश को एक एग्जाम्पल बना के पेश किया।

  इसके साथ एक कहानी पेश की जाती है (इसे आगे मैं "मीम स्टोरी" के रूप में संबोधित करूँगा) कि कैसे लाल सागर के किनारे एक लाश बरामद हुई और मुसलमानों ने इस पर फिरौन का दावा करना शुरू कर दिया— फिर एक इसाई डॉक्टर/ऑथर Maurice Bucaille ने इस लाश पर परीक्षण किये और यह जान कर कि मुसलमानों के दावे में सच्चाई है, खुद मुसलमान हो गया। इस कहानी में कई तरह के मसाले लगा कर इसे पेश किया जाता है। अब इसमें कितनी सच्चाई है— आप खुद इसपे गौर कर लीजिये।
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Ramses's Mummy

   इसमें पहला पेंच तो यही है कि फिरौन एक उपाधि है न कि नाम— कुरान या एग्जोडस (पार्ट ऑफ ओल्ड टेस्टामेंट) में बहिर्गमन या मूसा के साथ जिस फिरौन के संघर्ष का जिक्र है, उसका कोई काल या पहचान नहीं है लेकिन चूँकि मूसा का काल तीन हजार ईसा पूर्व माना जाता है और यह ममी भी उसी काल के आसपास की है तो संभावना तो बनती है, लेकिन यहां सेटी प्रथम या रेमेसिस द्वितीय, मेर्नेप्टेह में से यह कहानी किसके साथ जुड़ती है, इसका कहीं भी, कोई भी, कैसा भी सबूत उपलब्ध नहीं— जबकि यह चर्चित ममी रेमेसिस द्वितीय या मेर्नेप्टेह की है। एक्चुअली इस पूरे प्रकरण में रेमेसिस द्वितीय और मेर्नेप्टेह के बीच बड़ा कन्फ्यूजन है— बुकाय ने अपनी किताब में सारा जिक्र मेर्नेप्टेह का किया है, जबकि सारी चर्चा रेमेसिस द्वितीय की होती है।

  यहां एक दिक्कत इसमें भी है कि इतिहास में रेमेसिस द्वितीय, सेटी प्रथम के पुत्र के रूप में दर्ज है और मेर्नेप्टेह, रेमेसिस के तेरहवें पुत्र के रूप में लेकिन आश्चर्यजनक रूप से दोनों की कहानी में उनका अंत और ममी के साथ हुई घटनायें एक जैसी हैं। यह दिक्कत इस ममी के साथ भी है कि इतिहास में दर्ज विवरण के हिसाब से इसका चेहरा Mernepteh से भी मिलता है और Seti the Great से भी।

रेमेसिस का इतिहास एग्जोडस की कहानी से मेल नहीं खाता

  बहरहाल इस शख्स (रेमेसिस द्वितीय) को वैली ऑफ किंग्स के KV7 नामी मकबरे में दफनाया गया था, लेकिन वहां होती लूटपाट की वजह से उसकी ममी को वहां से हटाया गया— रीरैप्ड किया और क्वीन इनहापी के मकबरे में रख दिया... लेकिन 72 घंटे बाद ही इसे फिर हटाया गया और हाई प्रीस्ट Pinedjem 2nd के मकबरे (दायर अल बहरी स्थित) में सुरक्षित कर दिया गया— जहां और भी 50 से ज्यादा राजा, रानी और शाही फैमिली के लोगों की ममियां सुरक्षित थीं... यह जानकारी ममी को रैप करने वाले लिनन पर दर्ज है। यहां से उसे 1881 में जर्मन इजिप्टोलॉजिस्ट Emile Brugsch और Gaston Maspero ने इन्हें डिस्कवर किया।
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Wikipedia about Ramses

  जबकि मेर्नेप्टेह को KV8 में दफनाया गया था, लेकिन उसकी ममी वहां मिलने के बजाय Amenhotep 2nd के मकबरे KV35 में मिली थी, जिसे विक्टर लौरेट ने 18 दूसरी ममियों के साथ खोजा था और 1907 में, कायरो म्यूजियम में डा० जी. इलियट स्मिथ में जिसे अनरैप्ड और एग्जामिन किया।

  1974 में आर्कियोलॉजिस्ट ने अपने दौरे में पाया कि ममी की कंडीशन खराब हो रही थी और तब बाकायदा एक राजा के तौर पर उसका पासपोर्ट बना कर उसे पेरिस भेजा गया। जहां परीक्षण के दौरान यह पाया गया कि उस पर फंगस का अटैक हो रहा था, जिसका ट्रीटमेंट किया गया। फिर परीक्षण और साइंटिफिक अनैलेसिस से उसके शरीर में कुछ घाव और फ्रैक्चर्स की पुष्टि हुई। शरीर से यह स्पष्ट हुआ कि वह बुरी तरह अर्थराइटिस से पीड़ित था। हाल के अध्यन यह भी बताते हैं कि Ankylosing Spondylitis इसका कारण हो सकता है— जीवन के अंतिम दशक में वह Haunched back से भी पीड़ित था, साथ ही ही डेंटल इनफेक्शन की पुष्टि हुई और मौत का कारण इन्हीं चीजों को माना गया।

रेमेसिस की लाश का ममिफिकेशन किया गया था

  यहां परीक्षण कर्ताओं का खास ध्यान ममी की पतली गर्दन की ओर गया— एक्सरे में पाया गया कि उसके अपर चेस्ट और सर के बीच एक लकड़ी फंसी है, जो सिर को स्थिर रखे है... इस पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि चूँकि इजिप्शन कल्चर में मृत्यु के बाद के जीवन में लोग विश्वास करते थे और खुद को ममी के रूप में सुरक्षित करवाते थे— ऐसे में उनकी मान्यता थी कि यदि कोई जाहिरी  अंग रह गया तो आत्मा मृत्यु के बाद के जीवन में एग्जिस्ट नहीं कर पायेगी... और ममीफिकेशन प्रोसेस के वक्त लाश का सर अपनी जगह से हट गया होगा तो उसे स्थिर रखने के लिये लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था।

  इसके बाद ममी को वापस कायरो पंहुचा दिया गया— जहां उसे कायरो म्युजियम में रखा गया और इजिप्शन राष्ट्रपति अनवर सादात और उनकी पत्नी ने ममी के दर्शन किये। यहां से उसे मूसा वाला फिरौन साबित करने की कोशिश शुरू हुई— जिसका मुख्य आधार ममी पर पाये जाने वाले समुद्री नमक के ट्रेसेज थे... तब इस पर कोई रिसर्च नहीं हुई कि कहीं यह नमक ममीफिकेशन प्रोसेस का हिस्सा तो नहीं। बुकाय के दिमाग में यह थ्योरी इस्लामिक विद्वान Yusuf Estes ने डाली थी, जब कायरो म्यूजियम में स्कॉलर्स के बीच बुकाय मेर्नेप्टेह की ममी पर, ममी को प्रीजर्व करने पर बात कर रहे थे।
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Bucaille's Book about Firon

  अब आइये मौरिस बुकाय पे— ‘मीम स्टोरी’ के हिसाब से बुकाय एक इसाई था और उसे इस्लाम या कुरान के बारे में कोई जानकारी पहले से नहीं थी (यूसुफ एस्टेस ने भी इस पर जोर दिया था)— जबकि इस रिसर्च के आसपास बुकाय सऊदी के शाह फैसल और रॉयल फैमिली के फैमिली फिजीशन थे और मिस्र के उस वक्त के शासक अनवर सादात भी उनके क्लायंट्स में थे, जिन्होंने बुकाय को शाही ममियों पर शोध के लिये विशेष छूट और सुविधा दी थी... बुकाय के निष्कर्ष से हालाँकि बाकी शोधकर्ता बिलकुल सहमत नहीं थे और उन्होंने इस पर सवाल भी उठाये थे।

  बुकाय ने फर्स्ट ऑफिशल रिपोर्ट में उसके डूब कर मरने की बात नहीं लिखी थी, लेकिन बाद में जो किताब लिखी "The Bible the Quran and Science" उसमें इस बात पर जोर दिया, जबकि फैक्ट से ज्यादा धार्मिक पूर्वाग्रह पर जोर था— हालाँकि एज यूजुअल इस्लामिक वर्ल्ड ने इस किताब को हाथों हाथ लिया, जबकि इस्लाम के बाहर इसकी तीखी आलोचना हुई। माना जाता है कि बुकाय ने इस्लाम में अपनी अलग पहचान बनाने और अनवर सादात और शाह फैसल जैसे शासकों में अपना प्रभाव बढ़ाने का मौका सुलभ जान कर यह षटराग किया था और उसे वह सब हासिल भी हुआ।

मुसलामानों के दावे और तथ्य

  अब आइये ‘मीम स्टोरी’ के दावों पे— दावा है कि फिरौन की लाश रेड सी के किनारे पाई गयी, जबकि यह ममी pinedjem 2nd के मकबरे में पाई गयी थी। दावा है कि यह वही फिरौन है जो मूसा का पीछा करते समुद्र में डूब गया था— लेकिन न कुरान से यह क्लियर है न एग्जाडस से कि मूसा का संघर्ष सेटी प्रथम, रेमेसिस द्वितीय, मेर्नेप्टेह में से किसके साथ हुआ था, क्योंकि फिरौन या फराओ तो सभी थे और मजे की बात यह है कि इनमें से किसी की भी मौत डूबने से नहीं हुई थी।

  दावा है कि खुदा ने फिरौन की लाश नेचुरल तरीके से प्रिजर्व करके रखी, जबकि हकीकत यह है कि वह ममी है और बाकायदा ममीफिकेशन प्रोसेस से गुजर कर इस अवस्था तक पंहुची है। दावा है कि ममी पर समुद्री नमक के ट्रेसेज इस बात की पुष्टि करते हैं कि उसकी मौत डूबने से हुई थी, लेकिन समुद्री नमक और बेकिंग सोडा मिक्सचर ममीफिकेशन प्रोसेस का हिस्सा थे जो और भी ममियों पर पाये गये।
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Ramses's Mummy in Museum

  फिर मूसा वाला फिरौन मूसा का पीछा करते हुए डूब गया था, इस पर दावा है कि उसकी लाश बाद में निकाल ली गयी थी— इसे मान भी लिया जाये तो सवाल यह उठता है कि लाश को उन्होंने ऐसे ही तो असुरक्षित न छोड़ दिया होगा, जब उस दौर के आम पुजारी तक ममीफाईड हो कर सुरक्षित हो जाते थे तो अपने मृत शासक को वे क्यों न सुरक्षित करेंगे? हालाँकि इस बारे में कोई साक्ष्य नहीं मिलते कि डूबने के बाद उसकी लाश निकाली गयी थी, फिर असुरक्षित या सुरक्षित छोड़ी गयी थी— दूसरे यह कहानी भी पौराणिक है, जो एग्जाडस से निकली है और उस दौर के किसी भी शासक के साथ इस कहानी का वर्णन नहीं मिलता।

  और फिर भी अगर बुकाय समेत सारे दावों को (नेचुरल प्रिजर्व/ममीफाईड वाले हिस्से को छोड़ कर, क्योंकि वह ममी प्रूव्ड है) को मान भी लें तो कोई ममी किसी के लिये भी इबरत कैसे हो सकती है। यह तो इंसानी कारीगरी थी और प्राचीन मिस्रवासियों के लिये एक कला थी जिसके सहारे न सिर्फ शाही खानदान के लोग, रियासत के अमीर, पुजारी बल्कि आम समर्थ लोग भी अपने शरीर को सुरक्षित करवाते थे— जिसकी गवाह आज भी मौजूद ढेरों ममीज हैं— उनमें चमत्कार क्या है? इजिप्ट के अर्कियालोजी विभाग की सरकारी वेबसाईट पे रेमेसिस और बाकी दूसरी ममीज़ के बारे में पढ़ सकते हैं कि किसी की भी मौत समुद्र में डूबने से नहीं हुई थी।

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