मानव विकास यात्रा 3
आग का इस्तेमाल
इंसान के शिखर पर पहुंचने की एक महत्वपूर्ण सीढ़ी आग का इस्तेमाल और उसे
घरेलू बनाना था— लेकिन इसका श्रेय सेपियंस को नहीं दिया जा सकता। आठ लाख साल पहले
कभी कभार आग का इस्तेमाल हुआ हो सकता है लेकिन तीन लाख साल पहले तक होमो इरेक्टस, नियेंडरथल और
सेपियंस के पूर्वज इसका नियमित इस्तेमाल करने लगे थे।
इससे न सिर्फ उन्होंने अब रोशनी,
ठंडे इलाकों में गर्माहट का साधन और शिकारी जानवरों से बचने के लिये एक घातक
हथियार हासिल किया था बल्कि अब इसके इस्तेमाल से वे गेंहू, चावल और आलू
जैसी जिन वस्तुओं को उनके कुदरती रूप में वे पचा नहीं पाते थे, वे पकाये जाने
के बाद मनुष्यों के भोजन का मुख्य आधार बन गयीं और म्यूटेशन्स के बाद सेपियंस ने
इसी महारथ के चलते बारह हजार साल पहले खेती की नींव डाली।
इससे पहले भाषाई दक्षता ने उन्हें बड़े समूहों में ढाला था और जहां-तहां उगी
मिलने वाले जंगली घास के रूप में यह चीजें उन्हें हासिल जरूर थीं लेकिन बारह हजार
साल पहले उन्होंने इसे खुद उगाना शुरू किया और दस हजार साल पूर्व तक वे उस स्थिति
में पहुंच गये जहां उन्होंने बाकायदा खेती को नियंत्रित करना सीख लिया और उपजाऊ
जमीनों के गिर्द डेरा डालने लगे।
कृषि क्रांति का जन्म
इससे पहले वे भटकने वाले समूह हुआ करते थे लेकिन धीरे-धीरे कृषि क्रांति ने
पूरी दुनिया में उनके कदमों को थामना शुरू कर दिया और इतिहास में पहली बार वे
स्थाई बस्तियों के रूप में आबाद होना शुरू हुए। यह क्रांति बिना किसी ग्लोबल
कम्यूनिकेशन के अमेरिका से ले कर चीन तक घटित हुई थी और दस हजार साल और साढ़े तीन
हजार ईसा पूर्व के बीच के समय में बाकायदा कृषि के रूप में वह सबकुछ उगाया गया जो
हम आज देखते हैं। एक तरह से हम कह सकते हैं कि जहां पहले लोगों के भोजन लगातार
बदले थे, वहीं
दो तीन हजार साल साल से हमारा भोजन लगातार वही है जो हमारे शिकारी, भोजन
संग्रहकर्ता और कृषक पूर्वजों का हुआ करता था।
कृषि क्रांति से पूर्व जब सेपियंस शिकारी या भोजन संग्रहकर्ताओं के रूप में
भटकते थे तब समूहों में पुरुषों और स्त्रियों की भूमिका बराबरी की हुआ करती थी और
वे समूह अपने नियमों के इतने पक्के हुआ करते थे कि समूह में बीमार, बूढ़ों और
अतिरिक्त बच्चों की हत्या तक कर देते थे कि उनके कदम न थमने पायें लेकिन जब
उन्होंने स्थाई बस्तियों के रूप में बसना शुरू किया, तब उनके जीने के तरीके बदल गये और जहां खेती ने जहां
पुरुषों को घर के बाहर की सारी जिम्मेदारियों की ओर धकेला, वहीं स्त्रियों
की भूमिका भी एक हद तक सीमित कर दी।
जबकि पहले उसकी भूमिका लगभग बराबर की रहती थी और वे मिल कर शिकार करते थे
या भोजन इकट्ठा करते थे। जिन मिथकों ने उन्हें बड़े-बड़े समूहों में ढाला था उनमें
एक प्रमुख भूमिका उन समूहों में मौजूद ओझाओं की होती थी और यह ओझा स्त्री पुरुष
कोई भी हो सकते थे। जबकि बाद के दौर में ज्यादातर समाज उस पुरुष वर्चस्ववादी ढांचे
में ढलते गये जहां हर प्रमुख भूमिका पुरुष की ही होती थी।
होमोसेपियंस के स्थायी ठिकानें
जीवन के इस नये ढर्रे ने जहां भविष्य में उनकी अगली पीढ़ियों के लिये
तरक्की की राहें खोलीं वहीं इसके बहुत से साईड इफेक्ट भी हुए। पहले के भोजन
संग्रहकर्ता और शिकारी समूहों के मुकाबले कृषक समूह बहुत ज्यादा मेहनत करते थे और
कम संतोषजनक जीवन जीते थे। खेती जी तोड़ मेहनत मांगती थी जिसकी वजह से वे स्थायी
बस्तियां बसाने पे मजबूर हुए— जिसके कई साइड इफेक्ट भी सामने आये। किसी आपदा का
शिकार हो कर फसल नष्ट हो जाने से वे अकाल का भी शिकार होते थे और स्थायी रूप से एक
जगह बसने पर कोई संक्रामक रोग भी उन्हें अपनी चपेट में ले लेता था।
इसके सिवा जब स्थाई बस्तियां बसीं तो एक व्यवस्था परक तंत्र भी खड़ा हुआ और
इसने व्यापारी, पुरोहित
और शासक के रूप में ऐसे अभिजात्य वर्गों का गठन किया जो खेतों में हाड़ तोड़ मेहनत
करने वाले किसान के मुकाबले या तो नाम की मेहनत करते थे या शून्य। जहां कृषि
क्रांति से पहले शिकारी या भोजन संग्रहकर्ता समूहों में सभी मिल जुल कर काम करते
थे और लगभग सभी बराबरी की हैसियत रखते थे,
वहीं इस नई व्यवस्था ने उन्हें अलग-वर्गों में बांट दिया। एक वह वर्ग जो शासन
करता था और एशपरस्त जीवन बसर करता था— दूसरा वह जो व्यापार करता था और बहुत थोड़ी
मेहनत के बदले बहुत ज्यादा पाता था और एक वह जो बहुत ज्यादा मेहनत करता था और बहुत
थोड़ा पाता था।
बहरहाल कृषि क्रांति ने सेपियंस को स्थाई तौर पर बसना सिखाया और नये ढले
समाजों ने अलग-अलग व्यवस्थाओं को जनम दिया। इस प्रगति में करीब साढ़े तीन हजार ईसा
पूर्व पहिये के इस्तेमाल ने और गति प्रदान की। पहिये का विकास तब हुआ जब इंसान एक
पेचीदा समाज विकसित कर चुका था— जिसमें आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक प्रणालियां मौजूद थीं, कई जानवरों को
पालतू बनाया जा चुका था और पीछे कई सदियों से खेती की जा रही थी— जबकि इस बीच हम
सिलने वाली सुइयां, कपड़े, टोकरियां, बांसुरियां और
नाव वगैरह बनाना पहले ही सीख चुके थे।
इस देरी की वजह कुछ भी रही हो सकती हो लेकिन इसके आविष्कार के बाद भी कई
सदियों तक इसके इस्तेमाल से सिर्फ बर्तन बनाये जाते रहे और बाद में इन्हें चक्कों
के रूप में ढाला गया जब पत्थरों को ढुलका कर भारी निर्माण कार्य शुरू किये गये और
आगे चल कर इसे उन पहियों के रूप में ढाला गया जहां वे किसी रथ या बैलगाड़ी जैसे
वाहन के मुख्य पार्ट के रूप में इस्तेमाल हो सकें और इससे निश्चित ही हमारे विकास
को और तेज गति मिली।
Written by Ashfaq Ahmad
Post a Comment