जिहाद का सच
जिहाद का सच
मैंने एक लेख में इस्लाम के तथाकथित रक्षकों से कुछ सवाल पूछे थे जिससे मेरी एक फेसबुकी महिला मित्र बड़ी आहत हुईं और उन्होंने मुझे यह ब्रह्म ज्ञान दिया कि मैं खुदा की राह में लगे जेहादियों पर सवाल उठा कर गलत कर रहा हूं।
मैंने कहा कि
वह जेहादी
नहीं आतंकवादी
हैं तो
उन्होंने कहा
कि जेहाद
की जरूरत
जब होती
है तब
किया ही
जाता है
और यह
एक ईमान
वाला जज्बा
है जो
वे लोग
इस्लाम के
नाम पर
जान देने
को तैयार
हैं और
अल्लाह ने
कुरान में
कहा है
कि जो
मेरे नबी
का दुश्मन
वो मेरा
दुश्मन।
मैंने कहा कि
कौन है
नबी का
दुश्मन?
यह इस्लाम के
ठेकेदार तो
दुनिया के
सारे हिंदुओं,
इसाईयों, यहूदियों,
बौद्धों या
दूसरे शब्दों
में कहें
तो सभी
गैरमुस्लिमों को
इस्लाम का
दुश्मन बताते
हैं तो
क्या सभी
को खत्म
कर देना
चाहिए? पेशावर
में मारे
गये बच्चे
नबी के
दुश्मन थे?
खुद को
नबी के
खानदानी बताने
वाले शिया
मुसलमान, जिन्हें
पाकिस्तान, सीरिया,
यमन, अरब,
ईराक, ट्यूनीशिया,
नाइजीरिया वगैरह
में मारा
जाता है
क्या वे
नबी के
दुश्मन हैं?
उन्होंने कहा कि
यह सब
यहूदियों और
हिंदुओं की
चाल है
और गैर
मुस्लिम की
तो बात
ही मत
कीजिए क्योंकि
वह ईमान
वाले नही
होते (यानि
दूसरे शब्दों
में उन्हें
मारा जा
सकता है),
और उलेमा
कभी गलत
नहीं कहते
(जो इस
खूनखराबे को
जेहाद के
नाम पर
जायज ठहराते
हैं), आखिर
उन्हें भी
यह अपनी
आखिरत देखनी
है।
मतलब जो दहशतगर्दी
को जेहाद
बतायें, भूकम्प
का कारण
औरतों का
जींस पहनना
बतायें, हस्तमैथुन
करने वाले
के अगले
जन्म में
हाथ बन
के पैदा
होने की
भविष्यवाणी करें
(बावजूद इसके
कि इस्लाम
में पुनर्जन्म
का कोई
कॉन्सेप्ट नहीं),
भूखे पति
के विकल्पहीनता
की स्थिति
में पत्नी
को मार
कर खा
जाने की
वकालत करें,
कामकाजी महिलाओं
को कुंवारे
सहकर्मियों को
दूध पिलाने
का फरमान
सुनायें... ऐसे
मौलानाओं, मजहबी
पेशवाओं की
बातें चुपचाप
सुन कर,
घोल कर
पी जाऊं, और अपनी अक्ल
को अपने
घुटनों में
ट्रांसफर कर
लूँ, तो
ही मैं
सच्चा मुसलमान
कहलाउंगा।
बहरहाल मैंने उनसे
गुजारिश की
कि वे
थोड़ा अखबार
टीवी के
जरिए खबरें
भी देखा
सुना करें
क्योंकि न
सिर्फ हिंदुस्तान
में बल्कि
पाकिस्तान में
भी ढेरों
मौलानाओं/उलेमाओं
ने बैठक
कर के
बाकायदा साझा
बयान जारी
किया है
कि यह
जेहाद नहीं
बल्कि गैर
इस्लामिक अमल
हैं, जिनसे
इस्लाम का
कोई वास्ता
नहीं और
एसे लोग
मुसलमान कहलाने
के भी
लायक नहीं।
इस पर उनका
यह कहना
था कि
वे खबरें
इसलिये नहीं
देखती कि
वह सब
झूठ बोलते
हैं और
सच नहीं
दिखाते।
मतलब इनकी हरकतों
को दिखाने/बताने वाली
खबरों के
बारे में
वे श्योर
हैं कि
वे झूठी
हैं तो
सच का
पता उन्हें
कैसे चला?
क्या वह
गैब की
जानकारी रखती
हैं या
इन सो-काल्ड जेहादी
संगठनों से
जुड़ी हुई
हैं कि
उन्हें वह
सच पता
है जो
बाकी दुनिया
को नहीं
पता।
खैर, आखिर में
उन्होंने मुझे
सलाह दी
कि मुझे
कुछ पता
नहीं है (मेरी जानकारी का
स्रोत तो
किताबें, अख़बार, टीवी, नेट पर उपलब्ध कंटेंट और
खुद आई.
एस. के अपलोड किये
वीडियो हैं—मेरी जानकारी को गलत
साबित करने
वाली जानकारी का उनका
स्रोत क्या
है, ये उन्होंने नहीं
बताया), पहले
मुझे पता
करना चाहिए
और इस
तरह जेहाद
के खिलाफ
(यानि मैंने
इन लोगों
की जिन
हरकतों पर
सवाल उठाए
थे, वह
जेहाद थे?)
सीधे सादे
मुसलमानों को
भड़काने की
कोशिश नहीं
करनी चाहिए।
तो हजरात
एक सवाल
आपसे कि
यह मोहतरमा
किस हद
तक सही
हैं और
जिन्हें यह
सही लगती
हैं एक
सवाल उनसे
कि अगर
आई. एस.
जेहाद कर
रहा है
तो वह
इतने सक्षम
हैं कि
अमेरिका/रूस
और आसपास
की सारी
हुकूमतों से
लड़ सके
तो उन्होंने
अब तक
इजराइल से
कोई सीधी
जंग क्यों
नहीं की
जो वाकई
में इस्लाम
के सबसे
बड़े दुश्मन
हैँ?
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