हाकिम का चुन्नू प्रेम
हाकिम का चुन्नू प्रेम
एक समय की बात है -- उत्तर पूर्व के प्रदेश में गंगा के तट पर बसे नगर में चुन्नू नाम का एक शैतान बालक था जो एक धनी सेठ का बिगड़ा हुआ पुत्र था। चुन्नू अपने पिता के धन और प्रभाव के कारण छोटी मोटी शैतानियाँ तो करता रहता था किन्तु एक दिन अपनी सखी के बहकावे में आकर मूंगफली की चोरी जैसा जघन्य अपराध कर बैठा। अब राज्य के व्यवस्था कर्मियों को यह स्वीकार नहीं था सो उन्होंने चुन्नू को धर दबोचा। अब चूँकि मामला मूंगफली की चोरी जैसा हाई प्रोफाइल जो था और मूंगफली भी किसी गरीब की नहीं -- एक प्रभावशाली व्यक्ति की थीं। चुन्नू ने पहले तो रोते बिलखते, घड़ियाली आंसुओं के स्पेशल इफेक्ट सहित तमाम बहाने पेश किये लेकिन जब बात न बनी तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
चुन्नू
को खबरचियों की
सभा में लाया
गया, जहाँ बागडोर
राज्य की व्यवस्था
से जुड़े एक
विशाल हृदय वाले
दरोगा जी के
हाथ में थी।
उनका मन आहत
था कि बेचारा
चुन्नू … उसकी व्यथा
तो कोई देख
ही नहीं रहा
-- सब मूंगफलियों के
पीछे पड़े हैं।
चुन्नू बेचारा कुछ बोल
पाता, उससे पहले
ही दरोगा जी
ने सफाई देनी
शुरू कर दी।
"रुकव भाई,
चुन्नू बेटा, सामने आवउ...
देखव भैया, गलती
तो केहु से
भी हुइ सकती
है, हमसे भी
होती है, आपसे
भी होती है,
इससे भी हुई
है … ई कोई
अपराधी थोड़े न
है। "
दरोगा
जी का प्रेम
और स्नेह देख
चुन्नू के नयन
द्रवित हो उठे
तो उन्होंने उसे
प्यार से सहलाते
हुए समझाया, "देखो
चुन्नू बेटा, कोई भी
गलत काम न
करना, कोई ऐसा
काम न करना
जिससे तुम्हारे माँ-बाप, भाई,
रिश्तेदार सबका सर
झुके … ऊ परेशान
हों। अब नहीं
न करोगे कुछ
ऐसा। "
चुन्नू
ने "हाँ" में सर
हिलाया और बेचारे
चुन्नू की दीन
हीन अवस्था देख
दरोगा जी ऐसे
भाव-व्हिल हुए
कि सांत्वना जताने
के लिए चुन्नू
को प्यार से
झुका कर एक
स्नेहपूर्ण चुम्बन चुन्नू के
मस्तक पर जड़
दिया, जिससे उन्हें
मन की अगाध
शांति प्राप्त हुई।
किन्तु
इस क्रिया की
कई प्रतिक्रियाएं हो
गयीं … बेचारे कलमची और
कैमराची बिरादरी नरभसा गयी
कि ई का
होय गवा। व्यवस्था
से जुड़े अधिकारी
अलग हैरान एवं
परेशान हो कर
बैकफुट मोड में
पहुँच गए कि
जल्दी से दरोगा
जी को मैनेज
करो की जनता
में कहीं गलत
सन्देश न पहुँच
जाये ... और चुन्नू
मन ही मन
आल्हादित हुआ -- यह तो
शह मिल गयी।
उसने बेकार
मूंगफली जैसी चिरकुटई
की -- उसे तो
मुर्गी चुराने जैसा कोई
सुप्रीम काण्ड करना चाहिये था।
सब इस चुम्मे
से मैनेज हो
जाता।
लेकिन
खबरचियों की तो
निकल पड़ी -- उन्होंने
चौराहों पर डुग्गी
पीट दी और
आम पब्लिक तो
बुड़बक होती है,
गली नुक्कड़ पे
चबड़ चबड़ करती
फिर रही है
कि मूंगफली चोरो
के साथ सरकार
ऐसा प्रेम भाव
दिखलाएगी तो आगे
मूंगफली के बजाय
उनकी मुर्गियां बकरियां
चोरी होने लगेंगी।
अब इस पब्लिक
को कौन से
बाबा आकर जड़ीबूटी
खिला कर समझाएं
कि चोरों पर
यह प्रेमभाव तो
आलरेडी बना ही
हुआ है -- ऐसा
न होता तो
राज्य में चुन्नू
जैसे चिरकुटों की
पौ-बारह भला
कैसे होती ?
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