"अब की बार मोदी सरकार"
"अब की बार मोदी सरकार"
अब तक कानों को कांग्रेस सरकार, सपा सरकार, भाजपा सरकार इत्यादि सुनने को मिलता रहा है लेकिन इस बार "अब की बार मोदी सरकार" के नारे के साथ एक व्यक्ति को पार्टी से बड़ा साबित करके व्यक्तिवादी राजनीति का प्रचार वो भाजपा ज़ोर शोर से कर रही है जो आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई देते नहीं थकती और हमेशा से व्यक्तिवादी राजनीति की धुर विरोधी रही है और इस मामले में संघ परिवार भी समर्पण की मुद्रा में इस व्यक्तिवादी राजनीति के आगे हथियार डाले बैठा है जो हमेशा किसी एक व्यक्ति को शक्ति का केंद्र बनाने के विरोध में रहा है।
जीत
की अनदेखी सुगंध
और मोदी की
लोकप्रियता भाजपा और संघ
परिवार की वैचारिक
राजनीति को इस
हद तक पीछे
धकेलने में कामयाब
रही है कि
बीजेपी अपने सम्पूर्ण
प्रचार तंत्र में मोदी
को आगे रख
कर खुद कहीं
गायब हो गयी है।
बीजेपी की कैंपेन
में चाहे टीवी
विज्ञापन हों या
कुछ संगीत के
धुरंधरों द्वारा तैयार वह
गीत जो ट्रेंड
की तरह बाज़ार
में आया है
... हर जगह
बस मोदी ही
मोदी हैं -- बीजेपी
कहीं पार्श्व में
चली गयी है।
देखा
जाए तो अब
मोदी के नेतृत्व
वाली भाजपा के
बजाय मोदी के
कब्ज़े वाली भाजपा
कहना ज्यादा प्रासंगिक है, जिसकी
सुगबुगाहट केंद्रीय राजनीति में
स्थापित आडवाणी, सुषमा, जसवंत,
मुरली मनोहर जोशी,
यशवंत सिन्हा जैसे
वरिष्ठ नेताओं ने पहले
ही पा ली
थी और मोदी
की छाया में
अपने वजूद को
ख़त्म होने से
बचाने के लिए
शुरू से मोदी
के केंद्रीय राजनीति
में प्रवेश को
लेकर सहज नहीं
थे और अपनी
असहमति और विरोध
को गाहे बगाहे
लगातार ज़ाहिर कर रहे
थे लेकिन अन्ततागोतवा
उन्हें नाकामी ही हाथ
लगी और अडवाणी
के टिकट में
देरी, जोशी के
स्थानांतरण और जसवंत
का टिकट काट
कर मोदी ने
इस पुरानी बीजेपी
के संस्थापक बूढ़ों
को एक संकेत
दे दिया कि
अब उनका वक़्त
हो चुका है।
इनमे से जो
जीत गए वह
तो दो तीन
साल अपने अस्तित्व
को बचाने में
कामयाब रहेंगे लेकिन जो
हारेंगे उनकी यही
अंतिम पारी हो
जायेगी।
जो
लोग मोदी की
राजनीति के तौर
तरीकों को समझते
हैं उन्हें यह
अंदाज़ा लगाने में दिक्कत
नहीं कि मोदी
अपने सामने किसी
भी कद्दावर नेता
को कोई लाइफ
लाइन नहीं देने
वाले और इस
वजह से बीजेपी
के जन्म के
समय से साथ
रहे पुराने और
बड़े कद
के नेता इस
मोदी लहर में
असहज महसूस कर
रहे हैं। आप
ढूंढने जायेंगे तो आपको
पाठक,चौबे, टंडन,
शाही जैसे ढेरों
भाजपा नेता इसी
लहर के बीच
मिल जायेंगे जो
हवा का रुख
देख पार्टी से
जुड़ी निष्ठा तो
दिखा रहे
हैं लेकिन अंदरखाने
उनके असंतोष और
असहयोग से खुद
टीम मोदी और
संघ परिवार भी
कम विचलित नहीं
है और सबकी
मानमनौवल में अच्छी
खासी ऊर्जा खर्च की
जा रही है।
हो सकता है
कि यह वरिष्ठ
नेता हथियार डाल
भी दें लेकिन
क्या इनके समर्थक
भी हथियार डालेंगे
?
यह
सच है कि
भाजपा इस बार
अपने अब तक
के सबसे फायदे
वाले चुनाव में
कदम रख रही
है लेकिन यह
भी उतना ही
सच है कि
बीजेपी इसी चुनाव
में अब तक
के सबसे बड़े
भित्तरघात का सामना
भी करेगी। उसके
पैराट्रूपर्स उम्मीदवारों ने संगठन
में ही ढेरों
जसवंत सिंह पैदा
कर दिए हैं
जिनसे निबटना आसान
नहीं। अब यह
तो समय ही
बतायेगा कि मोदी
इस झटके से
उबर जायेंगे या
प्रधानमंत्री की कुर्सी
की तरफ बढ़ते
उनके क़दमों को
उनकी ही पार्टी
के लोग थाम
लेंगे लेकिन अंत
पंत एक जो
बात मेरी समझ
में आयी वह
यह कि अगर
मोदी कामयाब रहे
तो आगे चल
के बीजेपी,भारतीय
जनता पार्टी न
रह कर भारतीय
मोदी पार्टी तो
ज़रूर बन जायेगी।
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